प्रदूषण

नाला बन चुकी गंगा यमुना की किसी पार्टी को फिक्र नहीं

बिजली, सड़क और पानी भारतीय चुनावी वादों की दशकों से चलने वाली ऐसी तिकड़ी है, जिस पर लोग वोट देने के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन पानी इतनी दूर से आता है, तो यह उतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं हैं, जितना कि देश का सर्वाधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश।
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<p>Drain carrying toxic effluents to the Ganga in Kanpur [image by Juhi Chaudhary]</p>

Drain carrying toxic effluents to the Ganga in Kanpur [image by Juhi Chaudhary]

अभिषेक श्रीवास्तव जैसे ही आगरा के सदर बाजार से एक बटुआ खरीदते हैं, वह कहते हैं, “जी हां, गंगा और यमुना नदी  नालियों में परिवर्तित हो गई हैं, लेकिन कोई भी उम्मीदवार इस बारे में चर्चा नहीं कर रहा है और न ही कोई मतदाता पूछ रहा है। क्यों नहीं? “मुझे नहीं पता। मतदाता केवल उन्हीं मुद्दों को दोहराते हैं, जो उम्मीदवारों द्वारा प्रचार अभियान के दौरान उठाए जाते हैं।”

गंगा और यमुना की धरती उत्तर प्रदेश एक नई सरकार के निर्वाचन के लिए तैयार हैं, जहां 14 करोड़ से ज्यादा लोग मतदान के पात्र हैं। चुनाव प्रचार हर विद्यार्थी को लैपटॉप देने के अनावश्यक वादों, व्यंग्य और कटुता से चित्रित रहे। जनमत सर्वेक्षण दुविधा में पड़े हुए करीब 40 फीसदी मतदाताओं के साथ, देश की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी, राज्य की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, जिसका कांग्रेस के साथ गठबंधन हैं और बहुजन समाज पार्टी के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। मतदान फरवरी और मार्च में हुए।

आगरा में चुनाव प्रथम चरण में 11 फरवरी को हुआ। जिस दुकान से श्रीवास्तव बटुआ खरीदते हैं, वहां से बाहर देखते हुए वह बदबूदार और मच्छरों से घिरी एक रुकी हुई नाली की ओर इशारा करते हैं और कहते हैं, “यहां तक कि नगरपालिका चुनावों में भी इस तरह की गंदी नालियों को मुद्दा नहीं उठाया जाता है। क्या आपको लगता है कि वह विधानसभा चुनाव में यह करेंगे? बिल्कुल भी नहीं।”

सदर बाजार, ताजमहल से एक किलोमीटर से भी कम है, और इसके पीछे यमुना, जो कि दिल्ली की तरफ से एक नाला है – उत्तर में करीब 200 किलोमीटर की दूरी तक – जब तक चंबल नदी से 200 किलोमीटर आगे आगरा के नीचे नदी में शामिल नहीं हो जाती।

दूर-दूर तक फैली उदासीनता

प्रत्येक व्यक्ति मानता है कि जहर, पीने के पानी और सिंचाई दोनों को प्रभावित करता है। फिर भी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहरों के बाद भी शहर में उदासीनता दिखाई देती है, सब उपजाऊ क्षेत्र गंगा और यमुना के बीच में हैं।

गोकुल राम, जो हथरस में रिक्शा चलाते हैं, कहते हैं, “यह सभी जगह समान है। मेरा गांव सोनीभद्र के निकट पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। वहां बिजली स्टेशन से निकलने वाली राख ने मिट्टी को बंजर बना दिया है। यहां आपको तब तक साफ पानी को नहीं मिल सकता, जब तक आप एक बोतल न खरीदें और हमारे पास उसके लिए पैसे नहीं हैं। कुओं का पानी पीला है और उसमें से बदबू आती है।”

क्या किसी ने प्रचार अभियान के दौरान इसके बारे में बात करते हुए सुना है? “नहीं”। क्यों नहीं? “मुझे नहीं पता।”

खुर्जा शहर के केंद्र में मानव-सौहार्द का एक प्रशंसनीय उदाहरण है। जिला प्रशासन द्वारा समन्वित वहां गरम कपड़ों को देने और एकत्रित करने का एक स्थान है। लेकिन 100 मीटर की दूरी के भीतर, सड़क पर आगे शहर के सबसे निर्धन इलाके में ज्यादातर दलित और मुस्लिम बसे हुए हैं, वहां सुअरों के लोटने के साथ एक खुला कचरे का ढेर है।

कसाई अखलाक कुरैशी की दुकान उस ढेर के ठीक सामने है। वह कहते हैं, “मेरे पास गोश्त को धोने के लिए भी साफ पानी नहीं है। उम्मीदवारों में से एक ने हमारे पड़ोस में बैठक आयोजित की थी। मैंने उनसे पूछा कि वह कम से कम एक नल हमें उपलब्ध करा देंगे। उन्होंने वादा किया था। देखते हैं क्या होता है।”

जहरीला पानी

दो डॉक्टरों ने पुष्टि की कि बुलंदशहर के जिला अस्पताल में जल जनित रोगों से पीड़ित रोगियों की बहुलता रहती है। सदाशिव मिश्रा अपने पांच वर्षीय बेटे को हल्के विषाक्तता के उपचार के लिए लाये थे। प्यासे बच्चे ने गन्ने के खेत के बाहर बहने वाले पानी को पी लिया था। पानी में मिश्रित कीटनाशकों की उच्च मात्रा ने उसे कई हफ्तों के लिए बीमार कर दिया था।

मिश्रा पूछते हैं, “हमें साफ पानी कहां मिलेगा? मेरी फर्म गंगा के किनारे पर गढ़ मुक्तेश्वर के पास है। वहां शायद ही गंगा में पानी है और जो है भी, वह गंदा है। उथले कुओं में भी वहीं गंदा पानी मिलेगा। गहरी खुदाई करने के लिए हमारी पास पैसे नहीं हैं।”

जब उम्मीदवार वोट मांगने उनके गांव आए थे, तब क्या उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था? “मैं अलग-अलग दलों के दो  उम्मीदवारों से पूछा। कोई जवाब नहीं था। तब मैं रुका। बात क्या है?”

डेटा जर्नलिज्म वेबसाइट इंडियास्पेंड ने जनवरी के अंतिम सप्ताह में मतदाताओं द्वारा मान्य सबसे अहम मुद्दों को जांचने के लिए एक जनमत सर्वेक्षण को प्रायोजित किया था। टेलीफोन पर 2,513 साक्षात्कार लिए गए, जिसमें से 28 फीसदी ने बिजली कटौती को सबसे अहम मुद्दा है। 20 फीसदी ने नौकरी, अर्थव्यवस्था और विकास, 10 फीसदी ने पानी की कमी और साफ पानी, 7 प्रतिशत ने सड़क और 4 फीसदी ने भोजन को इन चुनावों में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बताया।

साफ पानी कोई मुद्दा नहीं है

इसके बावजूद, जब तक प्रोत्साहित नहीं किया गया, किसी भी मतदाता जिसने इस संवाददाता से बात की, ने साफ पानी को एक मुद्दे की तरह इन चुनावों में नहीं पहचाना। उत्तर प्रदेश में केवल 20 फीसदी ग्रामीण और 52 फीसदी शहरी परिवारों में पाइप से जल आपूर्ति की जाती है। राज्य के 75 जिलों में 33 जिलों में भूजल को अतिदोहन होता है। मात्र कानपुर में ही, 400 चमड़ा
बनाने वाले कारखानों से 40 मिलियन लीटर अशोधित अपशिष्ट गंगा में निष्काषित किया जाता है।

इंडियास्पेंड के एक सर्वेक्षण में मतदाता वायु प्रदूषण के संदर्भ में भी उदासीन दिखाई दिए। 46 फीसदी शहरी मतदाताओं ने कहा कि उनकी श्वास लेने वाली हवा प्रदूषित है और 26 फीसदी ग्रामीण मतदाताओं ने भी यही कहा। सबसे खराब प्रदूषित हवा के मामले में भारत के दस शहरों में से चार शहर – लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद और फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश में हैं।

ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में होते नहीं हैं। ये स्वास्थ्य सेवा और सरकारी वित्त पोषित शिक्षा
संस्थानों में सुधार के वादों के साथ होती हैं। लेकिन जब तक इन मुद्दों पर चर्चा होती है, तब तक घोषणापत्र के वादों को पूरा होने की कोई वजह नहीं रहती।

गैर सरकारी संगठनों के एक समूह ने उत्तर प्रदेश के सतत विकास के लिए एक पृथक घोषणापत्र तैयार किया है। उनके सुझावों में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा पर विशेष ध्यान, जल आपूर्ति, स्वच्छता और ऊर्जा सुविधाओं को एकीकृत करने वाले हरित निर्माण सामग्री और घरों की डिजाइन को बढ़ावा देना; अशोधित सीवेज के नदियों में निर्गमन पर प्रतिबंध; सभी शहरों में उचित
अपशिष्ट प्रबंधन; झीलों, नदियों और तालाबों का पुर्नजीवन; वर्षा जल का संचयन शामिल हैं।

लेकिन जब तक उम्मीदवार और उससे ज्यादा महत्वपूर्ण मतदाता इन मुद्दों पर बात नहीं करेंगे, तब तक इस तरह के विचारों के चुनावी विवादों के किनारों पर रहने की संभावना है।