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पटना के घाटों को छोड़कर जा रही हैं गंगा

गंगा को पुनर्जीवित करने की योजना एक बेहद महात्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत पटना में घाटों को आकर्षक बनाया जा रहा है। लेकिन इस बात पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है कि नदी शहर से किलोमीटरों दूर चली गई है।
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<p>An ambitious ghat beautification plan is underway, but the Ganga has disappeared [image by: Mohd Imran Khan]</p>

An ambitious ghat beautification plan is underway, but the Ganga has disappeared [image by: Mohd Imran Khan]

बढ़ते प्रदूषण और घटते जल के कारण पहले से ही गंगा विकट स्थिति में है। लेकिन अब तो भारतीय राज्य बिहार की राजधानी पटना में ये अपने किनारों से बहुत तेजी से दूर होती जा रही है। विशेषज्ञों और इस दिशा में काम करने वाले काम करने वालों की चेतावनी है कि इस संकट से निपटने के लिए कोई भी गंभीर और वैज्ञानिक प्रयास नहीं किये गये हैं। इतना ही नहीं, यातायात की समस्या को सुलझाने के लिए नदी के ऊपर 20.5 किलोमीटर एलिवेटेड सड़क बनाई जा रही है। गंगा-पाथवे प्रोजेक्ट नामक ये महत्वाकांक्षी परियोजना गंगा के लिए एक नया खतरा है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पटना के रामाकर झा चेतावनी देते हुए कहते हैं कि हाल ही के वर्षों में मानवजनित हस्तक्षेपों के कारण गंगा, पटना के अधिकांश घाटों, नदी की ओर जाने वाली सीढ़ियों की श्रंखला से पहले से ही 2.5-3.5 किलोमीटर तक खिसक चुकी है। गंगा पाथवे परियोजना के लिए चले रहे निर्माण निश्चित रूप से इसे और आगे खिसकाएंगे। कुछ स्थानों में गंगा, परियोजना का कार्य प्रारंभ होने के बाद स्थानांतरित हुई है, लेकिन जब तक परियोजना कार्य समाप्त होगा, तब तक नदी शहर से पूरी तरह से दूर जा चुकी होगी।

गंगा पाथवे के पिलर्स और कचरा दोनों ही पानी की प्रवाह को बाधित कर रहे हैं। [image by: Mohd Imran Khan]
उन्होंने नदी में गहरे निर्माण से होने वाले खतरों के बारे में भी बताया। चूंकि पटना से फरक्का तक गंगा में भारी बाढ़ का सामना करना पड़ता है, तो ऊंची सड़क को सहारा देने के लिए बनाए गए स्तम्भों में काफी गंदगी जमा हो जाएगी। इसके परिणामों का अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन परिणाम अच्छे होने की संभावना नहीं है।

विश्व बैंक द्वारा समर्थित 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राष्ट्रीय गंगा बेसिन परियोजना के तहत एक साथ पटना के 20 घाटों के सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है। नदी पर काम कर रहे एक स्थानीय कार्यकर्ता का कहना है कि जब गंगा पहले से ही पटना से स्थानांतरित हो चुकी है, तब घाटों के आकर्षक होने का क्या फायदा? अधिकांश घाटों से पर्यटकों के लिए नदी की एक झलक पाना भी असंभव है।

वे आगे कहते हैं कि अब घाट बहती नदी के बिना किसी कोलाहल और अपने चारों ओर सूखी रेत से आगंतुकों का स्वागत करते हैं। भारी मात्रा में गंदगी के जमाव, वर्षों से जल प्रवाह में कमी और दीघा से राजापुर पावरफुल बिल्डर लॉबी की दखलंदाजी ने नदी के प्रवाह को बदल दिया है।

बिहार के शहरी आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड बीयूआईडीसीओ के प्रबंध निदेशक अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि 20 में से 16 घाटों के सौंदर्यीकरण का कार्य पूरा हो चुका है। राज्य प्रशासन के शीर्ष अधिकारी नदी को इन घाटों में वापस लाने के लिए बेहद गंभीर हैं। इस परियोजना की आधारशिला फरवरी 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रखी थी और इसे जून 2016 तक पूरा करना था, लेकिन इसमें देर हो गई।

कलेक्टोरेट घाट के मंदिर के एक 92 वर्षीय पुजारी केदार नाथ झा गंगा के धीरे-धीरे खिसकने के चिंतित साक्ष्य हैं। वह पिछले 49 वर्षों से वहां रह रहे हैं, और इस समस्या के लिए विकास के नाम होने वाले हस्तक्षेपों को दोषी मानते हैं।

वह कहते हैं, अब गंगा के आस-पास केवल गंदगी, मलिनता और सूखी रेत मिलती है। मां गंगा के लिए यह एक बुरा संकेत है। झा कहते हैं, युवा पीढ़ी के लिए यह स्वीकार करना मुश्किल होगा कि चार-पांच वर्ष पहले तक भी कलेक्टोरेट घाट पर नदी का प्रवाह था और श्रद्धालु गंगा में पवित्र स्नान करते थे और मंदिर में गंगाजल समर्पित करते थे।

गंगा पाथवे के आसपास बहुत सारा कचरा है लेकिन वहां पानी नाममात्र है। [image by: Mohd Imran Khan]
वह याद करते हुए बताते हैं कि कलेक्टोरेट घाट का मंदिर सबसे ज्यादा भीड़ वाले क्षेत्रों में से एक था, क्योंकि यह सैकड़ों लोग प्रार्थना करने और एक दशक पहले तक नदी की नजदीक की एक झलक पाने के लिए आते थे। अब सब बदल गया है। कलेक्टोरेट घाट से नदी के 3.5 किलोमीटर खिसक जाने से शायद ही अब कोई कोई भक्त यहां आता है। अफसोस करते हुए झा कहते हैं, इस सूखे संकरे नाले को देखो, इसने गंगाजी का स्थान ले लिया है।

झा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी गंगा पाथवे परियोजना पर अपनी आपत्ति न उठा पाने के दर्द और विवशता को व्यक्त करते हैं। वह बताते हैं कि जब गंगा पाथवे परियोजना के लिए कार्य शुरू हुआ था, तब ही कलेक्टोरेट घाट से नदी खिसकी थी।

गुस्से में झा कहते हैं, गा रूठ के नहीं गई हैं, गंगा को पुलवाला भगाया है।

अदालत घाट मंदिर के पुजारी बाबा महंत मनोहर दास कहते हैं कि यह वास्तविकता है कि गंगा घाटों से बहुत दूर खिसक गई है। इससे मंदिरों का भी आकर्षण समाप्त हो गया है। उन्होंने कहा, घाट से गंगा के दूर जाने के कारण हमारे मंदिर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में काफी कमी आई हैं। आस-पास के माध्यमों में जो भी पानी पाया जाता है, वह गंदे नालों का होता है।

गंगा के लिए उनकी गहरी चिंता दूसरों द्वारा प्रतिबिंबित की गई है। उदाहरण के लिए सूरज राय और महेश राय को ले लीजिए, दोनों नदी के गांव के निवासी हैं और दोनों को स्थानीय रूप से दियारा के नाम से जाना जाता है। हमें कलेक्टोरेट घाट में अपने गांव नाव से जाना पड़ता था, लेकिन अब हमें 3.5 किलोमीटर चलना पड़ता है। यह हमारे लिए बहुत बड़ा बदलाव है।

नदी के आसपास रहने वालों को अब नाव से चलने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि गंगा में पानी नहीं है। अब  लोग साइकिल से यात्राएं कर लेते हैं। [image by: Mohd Imran Khan]
वर्तमान में दर्जनों नौकाएं, अधिकांशतः मोटर बोट पिछले कुछ वर्षों से नदी के किनारे से कम से कम 2.5-3.5 किलोमीटर दूर नदी के गांव के लोगों के नौकायन के लिए चल रही हैं। केवल मानसून में, जब सूखे स्थानों में जल भर जाता है, तब ये मोटरबोट नजीदीकी घाटों से चलती हैं।

पिछले दो दशकों से यहां गंगा बचाओ अभियान का नेतृत्व करने वाले गुड्डू बाबा ने कहा कि गंगा निरंतर पटना से दूर जा रही है। यह 1990 के दशक से देखा जा रहा है, लेकिन यह अब तेजी से हो रहा है। उन्होंने नदी के सामने विकास योजना के तहत घाट के सौंदर्यीकरण के मूल्य पर सवाल उठाया। यह बेकार है और इसका कोई उद्देश्य नहीं है क्योंकि गंगा इन घाटों से दूर खिसक चुकी है। गंगा नदी के किनारों का विकास करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन लोग बहती नदी की खूबसूरती को याद करेंगे।

अंटा घाट सूख चुका है क्योंकि यहां गंगा का पानी बिलकुल भी नहीं है। [image by: Mohd Imran Khan]
तीन वर्ष पहले बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग ने भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण नदी की धारा को इसने मूल स्थान पर वापस लाने के लिए दीघा से कालीघाट तक 7 किलोमीटर लंबा और 15 फीट गहरा माध्यम बनाकर प्राथमिक कदम उठाया था। यह परियोजना के खिलाफ दायर जनहित मुकदमेबाजी के मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश का जवाब था। लेकिन इस माध्यम को बनाने के लिए 1.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च के बावजूद दक्षिणी किनारों के करीब गंगा नदी लाने का यह प्रयास विफल रहा।

ए एन कॉलेज, पटना के पर्यावरण विभाग के शोधकर्ताओं की एक टीम के एक अध्ययन के अनुसार, गंगा प्रत्येक वर्ष पटना से 0.14 किलोमीटर दूर जा रही है। अध्ययन में इसके लिए पिछले 30 वर्षों से नदी के धरातल के निष्कर्षण में कमी और बड़े पैमाने पर नदी में अनुपचारित सीवर के निष्कासन को जिम्मेदार बताया है। जब राज्य की राजधानी में नदी में स्टीमर चलते थे, तब प्रत्येक मानसून के पहले डेनमार्क के डेगर्स नदी के धरातल की खुदाई करते थे।

अधिकारियों के मुताबिक, ठोस अपशिष्ट में अशोधित अपशिष्ट पाए जाने के कारण आई डब्ल्यूएआई के इनकार करने के बाद चैनल की खाई की गहरी खुदाई नहीं की गई। कीचड़ वाहक नदियों के नियमित निष्कासन के कारण नदी के वास्तविक जल को पुनः लाना मुश्किल हो गया। गंगा पाथवे के चले रहे निर्माण ने भी जल के सुचारू प्रवाह के लिए होने वांले चैनल की खुदाई को बाधित किया।

हालांकि, जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता लक्ष्मण झा ने दावा किया है कि चैनल को 2019 तक दोबारा चालू कर दिया जाएगा क्योंकि प्रस्तावित पांच सीवेज उपचार संयंत्र एसटीपी को कार्यान्वित किया जाएगा। पांच एसटीपी, जो नमामि गंगे परियोजना के तहत प्रतिदिन लगभग 350 मिलियन लीटर दूषित जल को शोधित करेंगे। इन्हें बनाने  का काम प्रगति पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष इनका शिलान्यास किया था। बिहार प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक घोष ने कहा कि जब तक एसटीपी कार्यान्वित नहीं होते हैं, तब तक स्वच्छ गंगा के बारे में सोचना मुश्किल है, जोकि जल के मुद्दे के निपटने के लिए आवश्यक है।

(मोहम्मद इमरान खान पटना के स्वतंत्र पत्रकार हैं)