उर्जा

रूफटॉप सोलर: भारत की अक्षय ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं का एक गायब हिस्सा

भारत का लक्ष्य 2022 तक 40 गीगावाट रूफटॉप सौर क्षमता विकसित करना है, लेकिन लक्ष्य का दसवां हिस्सा भी हासिल नहीं हो पाया है। यह देश के जलवायु कार्रवाई में अग्रणी बनने के सपनों को पटरी से उतार सकता है।
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<p>नोएडा में, जनवरी, 2019 में एक मेट्रो स्टेशन की छत पर सोलर पैनल स्थापित किया गया (Amlan Mathur / Alamy)</p>

नोएडा में, जनवरी, 2019 में एक मेट्रो स्टेशन की छत पर सोलर पैनल स्थापित किया गया (Amlan Mathur / Alamy)

सौर ऊर्जा के तेज प्रसार के लक्ष्यों से मोदी प्रशासन ने भविष्य के जलवायु चैंपियन के रूप में अपनी प्रतिष्ठा पर दांव खेला है। यह 10 साल पहले अकल्पनीय था। भारत की सौर क्षमता 2010 में सिर्फ 11 मेगावाट से अधिक थी। आज, यह 40 गीगावाट है। सरकार को उम्मीद है कि दशक के अंत तक, यह सात गुना बढ़कर 280 गीगावाट स्थापित हो जाएगी।

इस तरह के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की सफलता, हर जगह सौर ऊर्जा की क्षमता के दोहन पर टिकी है, न कि केवल उन रेगिस्तानों में, जिन्हें आसानी से सौर पार्कों में बदला जा सकता है। और अब तक, भारत ने सोलर रूफ स्थापित करने की दिशा में उपेक्षा दिखाई है जबकि यह आने वाले वक्त के हिसाब से सबसे ज्यादा आशाजनक क्षेत्र है।

एक पारदर्शी निवेश वातावरण और चीन से आयातित सस्ती प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता के संयोजन ने अब तक सौर ऊर्जा की तीव्र प्रगति को मजबूत किया है। लेकिन बड़े पैमाने वाला सोलर, जो अब तक इस क्षेत्र के विकास का मुख्य चालक है, नई चुनौतियों का सामना कर रहा है। ये चुनौतियां इसके विस्तार को रोक सकते हैं। पैनलों के विशाल सरणियों को तैनात करने के लिए भूमि उतनी प्रचुर मात्रा में नहीं है, जितनी पांच साल पहले थी। पैनलों को साफ रखने के लिए आवश्यक पानी दुर्लभ होता जा रहा है। केंद्र व राज्य सरकारों के बीच नीतिगत बाधाओं ने भी निवेशकों के विश्वास को कम किया है। वैसे  तो बड़े पैमाने वाले सोलर के विकास की दिशा में एक मामूली मंदी की आशंका व्यक्त जा रही है लेकिन इससे लंबी अवधि में भारत के सौर दृष्टिकोण को नुकसान पहुंचने की आशंका नहीं है।  फिर भी, यह स्थिति मौजूदा गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को 2030 तक 500 गीगावाट तक बढ़ाने के लक्ष्य, जिसकी घोषणा कॉप26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, को पटरी से उतार सकता है।

भारत में रूफटॉप सोलर में अपार अप्रयुक्त क्षमता है

रूफटॉप सोलर की क्षमता का दोहन, भारत के नवीकरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। अब तक, भारत ने रूफटॉप्स पर 6.7 गीगावाट के पैनल स्थापित किए हैं – जो इस वर्ष तक 40 गीगावाट के अपने लक्ष्य से बहुत कम है। वैसे उन विश्लेषकों के अनुसार, जिन्होंने रूफटॉप सौर क्षमता का वैश्विक मानचित्र तैयार किया है, भारत, दुनिया में सबसे कम कीमत पर सबसे बड़ी मात्रा में बिजली पैदा करने के लिए सबसे अच्छा स्थान है। बड़े सौर पार्कों का स्वामित्व बड़ी ऊर्जा कंपनियों के पास होता है जो वितरण कंपनियों के माध्यम से बिजली भेजती हैं। रूफटॉप सोलर का विकेंद्रीकरण किया जाता है। यहां तक ​​​​कि छोटे घर भी अपनी बिजली का उत्पादन और वहां वितरण सीधे कर सकते हैं, जहां इसका उपयोग किया जाता है, जिससे मुख्य पावर ग्रिड पर उनकी निर्भरता कम हो जाती है।

अगर सरकार सौर ऊर्जा और अपने नवीकरणीय लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में गंभीर है, तो उसे चीन से सौर उपकरणों पर बुनियादी सीमा शुल्क के रोलआउट में देरी करनी चाहिए।
विभूति गर्ग, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी एंड फाइनेंशियल एनालिसिस

कंसल्टेंसी ब्रिज टू इंडिया के प्रबंध निदेशक विनय रुस्तगी कहते हैं कि अपनी क्षमता के बावजूद, दुनिया भर के अधिकांश सौर बाजारों की तुलना में भारतीय रूफटॉप बाजार में कम पैठ बनी हुई है। यह “मुख्य रूप से अस्थिर नीतिगत माहौल और उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता की कमी के कारण है”।

नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएसईएफआई) के उद्योग संघ के मुख्य कार्यकारी, सुब्रह्मण्यम पुलीपाका इस दिशा में आशावादी हैं। वह कहते हैं, “2021 में, हमारे रूफटॉप इंस्टॉलेशन दोगुने हो गए। हालांकि हम अभी भी लक्ष्य से काफी नीचे हैं और हम सही नीतियों के साथ बहुत बेहतर कर सकते हैं।”

पुलिपका बताते हैं कि महामारी ने बड़े पैमाने वाली सौर ऊर्जा की स्थापना को रोक दिया, जबकि आवासीय और औद्योगिक मांग में विकेन्द्रीकृत सोलर की वृद्धि हुई। उनका कहना है कि यह प्रवृत्ति, एक वर्ष में अतिरिक्त 4-5 गीगावाट के साथ, लॉकडाउन के अंत तक अच्छी तरह से जारी रहने की उम्मीद है।

राजनीतिक अड़चनें

वहीं, दूसरों का इस बात पर कम विश्वास है कि सही नीतियां अमल में आएंगी। एक थिंकटैंक, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के ऊर्जा अर्थशास्त्री विभूति गर्ग कहते हैं कि ग्राहकों को अपने पैनल के साथ नेट-मीटर स्थापित करने की अनुमति देना, जो उन्हें ग्रिड को उत्पादित अतिरिक्त बिजली बेचने में सक्षम बनाता है, इस क्षेत्र के तेज रफ्तार के लिए बहुत आवश्यक है। लेकिन सरकार ने नेट-मीटरिंग पर बहुत सख्त सीमाएं लगाई हुई हैं, केवल 10 किलोवाट क्षमता तक की सबसे छोटी इकाइयों को अर्हता प्राप्त करने की अनुमति दी है। इससे सौर रूफटॉप बाजार मरता जा रहा है।

नेट-मीटर क्या है?

एक उपकरण है, जो निगरानी करता है कि सौर इकाइयों से कितनी ऊर्जा वापस ग्रिड में डाली जाती है, और कितनी ग्रिड से ली जाती है। यह गणना करता है कि उपभोक्ता, सौर पैनलों के उत्पादन से अधिक ऊर्जा का उपयोग करता है या नहीं।

भारत, किसानों को लगभग मुफ्त और शहरी निवासियों को बहुत कम दर पर बिजली प्रदान करता है। वाणिज्यिक उद्यम और उद्योग, बाकी आबादी को सब्सिडी देकर बिजली के लिए सबसे अधिक कीमत चुकाते हैं। इसका मतलब कागज पर समझ आता है: कृषि, भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और अधिकांश किसानों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए समर्थन की आवश्यकता होती है, जबकि कई शहरवासी उच्च बिल वहन नहीं कर सकते। लेकिन व्यवहार में, इसका मतलब है कि निवासियों के पास, अक्षय ऊर्जा की तरफ रुख करने के लिए कुछ ही प्रोत्साहन हैं, क्योंकि उन्हें सौर पैनलों की अग्रिम लागत को वहन करना होता है या भ्रमित करने वाली सब्सिडी योजनाओं से जूझना होता है। रुस्तगी कहते हैं कि अन्य देशों में, उच्च ग्रिड टैरिफ के कारण रूफटॉप सोलर की वित्तीय व्यवहार्यता बहुत बेहतर है। इसका मतलब है कि रूफटॉप सोलर के लिए उपभोक्ताओं के पास बहुत मजबूत प्रोत्साहन हैं और इसलिए उन्हें जो भी अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता है, वह उचित है।

रुस्तगी कहते हैं कि रूफटॉप सोलर के लिए भूख पैदा करना त्वरित या आसान नहीं होगा। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि समय के साथ कीमतें गिरेंगी और लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी। वह कहते हैं, “अभी तो लोग, अपने किसी ऐसे दोस्त या पड़ोसी को भी नहीं जानते, जिन्होंने रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित किया हो। लेकिन तीन से चार वर्षों में, जैसे-जैसे स्थापित आधार बढ़ता जाएगा लोग एक-दूसरे से इसके बारे में सुनेंगे और अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे। यही उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।”

अपनी धन-बचत क्षमता के कारण, अक्षय ऊर्जा को अपनाना, पहले से ही उद्योगों और वाणिज्यिक उद्यमों के लिए एक आकर्षक विचार है। लेकिन भारत की ऊर्जा वितरण प्रणाली में, जो लंबे समय से दिवालियेपन के कगार पर है, उन्हें अपने उच्च बिलों का भुगतान करने की जरूरत है ताकि वे ऋणमुक्त हो सकें। इस कारण से, भारत के राज्य, नेट-मीटरिंग मेनस्ट्रीम में आनाकानी कर रहे हैं और देश भर में तेजी से सौर ऊर्जा ग्रहण करने की तात्कालिकता के बावजूद, 2022 में इसके बदलने की संभावना नहीं है।

रूफटॉप सोलर के लिए भारत के अगले बजट में क्या है?

भारत में 1 फरवरी को वार्षिक बजट पेश होने जा रहा है। गर्ग का कहना है कि इसमें स्वच्छ ऊर्जा वितरण के मुद्दों के समाधान होने की संभावना नहीं है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सरकार कम से कम उन अन्य चीजों पर विराम लगाएगी जो रूफटॉप सोलर को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनमें विशेष रूप से बुनियादी कस्टम ड्यूटी शामिल है, जो चीन से सौर मॉड्यूल खरीदना अधिक महंगा बनाता है।

भारतीय निर्माता वर्तमान में घरेलू स्तर पर आवश्यक सौर उपकरणों का केवल एक अंश ही प्रदान कर सकते हैं और चीन के पहले से निर्मित अधिक उन्नत उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। आयात पर कर लगाने से इस क्षेत्र को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। गर्ग कहते हैं कि अगर सरकार, सौर ऊर्जा और अपने नवीकरणीय लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में गंभीर है, तो उसे मूल सीमा शुल्क के रोलआउट में देरी करनी चाहिए क्योंकि घरेलू विनिर्माण में वृद्धि नहीं हो सकती है और न ही हुई है।

यह लेख सबसे पहले Lights On में प्रकाशित किया गया था

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