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साल 2021 के विनाशकारी बाढ़ के निशान अभी भी हैं मध्य प्रदेश में मौजूद

मध्य प्रदेश में अगस्त 2021 में आई बाढ़ से हुई तबाही की वजह से लोग बेहाल हो गए थे। सिंध नदी के किनारे एक सैर से ये पता चला है कि उस बाढ़ के निशान अभी भी वहां मौजूद हैं। भारी बारिश और जलाशयों के कुप्रबंधन की वजह से क्षेत्र के किसानों ने अपना सब कुछ खो दिया।
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<p><span style="font-weight: 400;">सिंध नदी तट पर स्थित लांच गांव के पास एक कंक्रीट का पुल, जो साल 2021 की बाढ़ ढह गया था। (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)</span></p>

सिंध नदी तट पर स्थित लांच गांव के पास एक कंक्रीट का पुल, जो साल 2021 की बाढ़ ढह गया था। (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का साझा क्षेत्र, बुंदेलखंड, अक्सर सूखे के लिए चर्चा में रहता है। लेकिन पिछले साल अगस्त में बुंदेलखंड की बाढ़ मीडिया में छाई रही। बुंदेलखंड में 3 अगस्त, 2021 से बरसात शुरू हुई। इसके बाद कुछ इलाकों में भारी बारिश हुई, जिसके चलते सिंध नदी के किनारे बाढ़ आ गई। यमुना की एक प्रमुख सहायक नदी इस क्षेत्र से होकर गुजरती है, जोकि इस क्षेत्र में बाढ़ का कारण बनी। बाढ़ में हजारों घर ढह गए। मवेशी मर गये। चारा नष्ट हो गया। लाखों लोग बेघर हुए।

सिंध नदी को पार करने के लिए बने कंक्रीट के तीन पुल- सेंवढ़ा, रतनगढ़ मंदिर और लांच पूरी तरह ढह गए। नदी के उफान मारने से कई और पुल भी क्षतिग्रस्त हुए। दरअसल, बुंदेलखंड दो राज्यों में बंटा हुआ है, इसलिए तुरंत नुकसान का आकलन करना मुश्किल हो गया था, लेकिन एक हफ्ते के भीतर ही केवल उत्तर प्रदेश के 350 से ज्यादा गांव बाढ़ के पानी से जलमग्न हो गए थे। 

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सिंध नदी के किनारे 2021 की बाढ़ से प्रभावित स्थानों का नक्शा। ग्राफिक: द् थर्ड पोल

बाढ़ के बाद सिंध नदी की यात्रा

अगस्त 2021 में बाढ़ आने के कई महीनों बाद मध्य प्रदेश के सेंवढ़ा में सिंध नदी के किनारे हमने यात्रा शुरू की। तब भी बाढ़ से मची तबाही को बयां करने वाले कई सबूत हमे नजर आए।

हमने वहां के किसान नरेश विश्वकर्मा और जयराम बघेल से मुलाकात की। उन्होंने हमें दिखाया कि कैसे बाढ़ में नदी का रेत उनके खेतों में आ गया, जोकि उनके फसल के लिए नुकसानदेह थी।  इस रेत वाली खेती में फसल भी नहीं उगाई जा सकती है। बाउंड्री की दीवारें गिर गई। मशीनरी की मरम्मत का काम अभी भी जारी है। जयराम ने बताया कि बाढ़ में उनकी ज्वार-बाजरा की फसल बर्बाद हो गई।

Two men walking over clay soil in hilly area
नरेश विश्वकर्मा और जयराम बघेल हमे अपने खेतों में ले जाते हुए। (फोटो: राहुल सिंह)
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जयराम बघेल अपने खेत के किनारे गिरी हुई बाउंड्री के सामने खड़े हैं। यह बाउंड्री साल 2021 की बाढ़ में गिर गई थी। (फोटो: राहुल सिंह)

ग्रामीणों ने भी अपने नुकसान के बारे में बताया। मकानों की छत और पेड़ों की फलक की ओर इशारा कर दिखाया कि पानी कितनी ऊंचाई तक पहुंच गया था, कैसे गांव डूब गए थे। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से गुजरते वक्त किसानों से बाढ़ की तबाही के मंजर की आंखों देखी कहानियां सुनना बेहद डराने वाला अनुभव था।

शिवपुरी जिले के धामधोली गांव के निवासी 75 वर्षीय कप्तान सिंह ने बताया, ”मैंने अपने जीवन में इतनी भयानक बाढ़ कभी नहीं देखी। पहले बाढ़ के दौरान जल स्तर बढ़ता था, लेकिन कभी भी नदी का पानी हमारे गांव में नहीं घुसा। मैंने 27 बीघा (7.44 एकड़) खेत में धान की फसल उगाई थी, जो बाढ़ के चलते बर्बाद हो गई। इसके लिए केवल 5000 रुपये मुआवजे के तौर पर मिले, जबकि कई अन्य गांव वालों को मुआवजा मिला ही नहीं। मुआवजा वितरित करने की जिम्मेदारी पटवारी के पास थी।”

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सडकरपुर के खेतों से नजर आने वाला सिंध नदी का दृश्य। (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)
A tree along the Sindh River
बाढ़ के दौरान जलस्तर कितना ऊंचा पहुंच गया था, यह बताने के लिए सडकरपुर गांव के निवासियों ने इस पेड़ को दिखाया, जो उस वक्त पूरी तरह डूब गया था। (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)

बाढ़ ने अपनी तबाही के निशान हर जगह छोड़े हैं। इनमें खेतों में जमा रेत भी शामिल है, जहां अब फसल उगाई जा रही है। सडकरपुर गांव के सुरेश कुशवाहा ने हमें अपने सामान के साथ घूमते हुए देखा तो अपने कुएं से निकालकर पानी पिलाया। सुरेश ने बताया कि कुएं में पानी का स्तर असामान्य रूप से बढ़ गया था। बाढ़ के बाद यहां कुओं में पत्थर और गाद जमा हो गई, जिससे जल स्तर बढ़ गया है।

Piles of sand left on a field by the Sindh River, deposited by floods
सडकरपुर गांव के पास गेहूं के खेत में बाढ़ के दौरान जमा नदी का रेत अभी भी नजर आ रहा है। (फोटो: राहुल सिंह)

सुरेश उन किसानों में से एक थे, जिन्होंने हमें अगस्त 2021 की बाढ़ के चलते खेतों, मोटर और बिजली लाइन को हुए भारी नुकसान को दिखाया। उन्होंने बताया कि जिस वक्त बाढ़ आई थी, तब खेतों में धान और मूंगफली की फसल उगी थी, जो बर्बाद हो गई। उनके खेतों की उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट हो गई। कठोर चट्टानी परत ऊपर आ गई थी जो फसल उगाने के लिए अनुपयुक्त थी। गांव के किसानों को अन्य क्षेत्रों से उपजाऊ मिट्टी लाकर अपने खेतों में डालनी पड़ी। इसके साथ ही फसल उगाने के लिए अब पहले से कहीं अधिक खाद का इस्तेमाल करना पड़ता है।

A well in Madhya Pradesh, the water level higher than usual after the 2021 Sindh River floods
साल 2021 की बाढ़ से कुओं में चट्टान और गाद इकट्ठी हो गई है, जिससे कुओं का जलस्तर सामान्य से अधिक है। (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)
White zinc powder on sack on the ground
सडकरपुर गांव के खेत में डालने के लिए तैयार रखी जिंक। फोटो: ऐशानी गोस्वामी)

सुरेश ने बताया, “एक खाद कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग नियमित रूप से हमारे गांव आते थे। उन्होंने हमसे 25 किलो यूरिया, 10 किलो पोटाश, सुपर उर्वरक का एक बैग और जिंक के कई पैकेट इस्तेमाल करने की सलाह दी।” उन्होंने बताया था कि जिंक यानी जस्ता को विशेष रूप डालने की जरूरत है, क्योंकि खेत की उपजाऊ मिट्टी पूरी तरह नष्ट हो गई है।

इससे किसानों पर अतिरिक्त खर्च बढ़ गया, जोकि उनके लिए वहन करना मुश्किल हो रहा था। दूसरी ओर इन रासायनिक उर्वरकों के जरिये मिट्टी को उपजाऊ बनाने के पर्यावरण पर भी दीर्घकालिक असर हो सकते थे।  

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कृत्रिम उर्वरक के खाली  पैकेटों से घिरे सडकरपुर गांव के किसान, जो अगस्त, 2021 की बाढ़ के अपने खेतों पर दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में बातचीत कर रहे हैं। (फोटो: राहुल सिंह)

बांध, सिंचाई और बाढ़ प्रबंधन

शिवपुरी जिले में सिंध नदी पर मोहिनी पिकअप जलाशय और मड़ीखेड़ा (अटल सागर) दो प्रमुख बांध हैं। ये बांध सिंध फेज-2 सिंचाई परियोजना का हिस्सा है, जिन्हें 2010-2011 में 74.66 अरब रुपये की लागत से शुरू किया था ताकि इस क्षेत्र में पड़ने वाले सूखे के असर को कम किया जा सके।

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सिंध नदी में मड़ीखेड़ा डैम के गेट (फोटो: ऐशानी गोस्वामी)

इस सिंचाई परियोजना से सतही जल की उपलब्धता बढ़ी। साथ ही भूजल स्तर में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिससे किसानों को मदद मिली। लेकिन पिछले साल अगस्त में हुई भारी बारिश के वक्त बांधों ने आपदा को और बढ़ा दिया। 3 अगस्त 2021 को मड़ीखेड़ा बांध के सभी 10 गेट खोल दिए गए। मोहिनी बांध के 25 में से तीन गेट 2 अगस्त की शाम को खोले गए थे। ज्यादातर ग्रामीण इस बात से अनजान थे। उन्हें अचानक गांव में पानी भरने का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। 3 अगस्त की रात वे लोग अपने घरों में भरे पानी से निकलकर ऊंचाई वाली जगहों पर पहुंचने के लिए हाथ-पैर मार रहे थे।

शिवपुरी जिले के बैगवां गांव के सरपंच हेमंत रावत बाढ़ के लिए प्रबंधन की कमी को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि कम समय में भारी बारिश हुई थी। ऐसे में प्रशासन को गेट खोलकर बांधों से पानी को जल्दी छोड़ना चाहिए था।

क्या जलवायु परिवर्तन है कारण?

अगस्त 2021 की भीषण बाढ़ के बावजूद बुंदेलखंड में गर्मियों में हुई कुल बारिश की मात्रा लगभग औसत थी। मध्य प्रदेश में 1 जून से 30 सितंबर के बीच 945.2 मिमी बारिश हुई, जबकि औसत बारिश 940.6 मिमी हुई थी। अंतर बस इतना कि बारिश केंद्रित थी। हालांकि, इस क्षेत्र के कुछ इलाकों में बहुत ज्यादा बारिश भी हुई। अगस्त की शुरुआत में बारिश बहुत तेज थी। एक ही क्षेत्र में बारिश की असमानता जलवायु परिवर्तन का ही असर है। 

जब 2-3 अगस्त, 2021 को बाढ़ आई तब शिवपुरी, गुना और दतिया में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई। मड़ीखेड़ा और मोहिनी बांध शिवपुरी जिले में हैं। गुना और विदिशा सिंधु नदी के ऊपर जिले हैं, जो आंशिक तौर पर बांधों के जलग्रहण क्षेत्र में योगदान देते हैं। 

वर्षा अगस्त की शुरुआत में अधिक तीव्र होने के कारण समय के अनुसार केंद्रित थी। वर्षा की यह अधिक असमानता जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट प्रभाव है।

दतिया शिवपुरीगुनाविदिशा
बारिश (मिलिमीटर)सामान्य वास्तविक सामान्य वास्तविकसामान्यवास्तविकसामान्यवास्तविक
1 अगस्त 8.26.810.36.6111.924.41412.55
2 अगस्त 7.579.9612.8119.1710.487.9513.629.63
3 अगस्त 8.551.6711.2231.8914.2139.612.649.43
4 अगस्त 7.42.959.332.2711.874.2513.99.24
स्रोत: आईएमडी ग्रिड


बुंदेलखंड में अप्रत्याशित बारिश का कृषि पर भारी असर पड़ता है, लेकिन दीर्घकालिक परिणामों से निपटने के लिए सरकार की कार्रवाई सीमित ही नजर आती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने साल 2011 ‘द नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर प्रोग्राम’ शुरू किया था, जिसका उद्देश्य अनुकूलन और शमन पर रणनीतिक अनुसंधान करना, किसानों के खेतों पर प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना और किसानों और अन्य हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाना है। एक दशक बीत जाने के बावजूद इसके जमीनी स्तर पर लागू होने के सबूत ना के बराबर हैं।

मध्य प्रदेश में जलवायु परिवर्तन कृषि और सिंचाई को कैसे प्रभावित कर रहा है? इसके जवाब में राज्य की कृषि निदेशक प्रीति मैथिल ने बताया, ‘जलवायु परिवर्तन से जुड़े ज्यादातर मुद्दे पर्यावरण मंत्रालय देखता है।’ इसके बाद हमने मध्य प्रदेश के कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अजीत केसरी के कार्यालय में भी कुछ सवाल भेजे। कुछ और सवाल प्रीति मैथिल के कार्यालय में भेजे हैं, जिनके जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा।

किसान व बांध अधिकारियों के बीच तालमेल की कमी है। साथ ही पिछले साल अचानक हुई बारिश का स्थायी प्रभाव अभी भी सामने है, जोकि किसानों के लिए जलवायु के कारण बढ़ते जोखिमों से निपटने के लिए सरकारी दृष्टिकोण की जरूरत को दर्शाते हैं। गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट के रिसर्च साइंटिस्ट और प्रोग्राम मैनेजर पीयूष रामटेके के अनुसार, ‘संबंधित अधिकारियों का ध्यान अभी आपदा प्रबंधन के स्तर पर ही है। इसमें जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं है।’

संपादक का नोट:  ऐशानी गोस्वामी और राहुल सिंह ने 23 जनवरी से 3 फरवरी, 2022 के बीच सिंध नदी के किनारे-किनारे 155 किलोमीटर तक पैदल यात्रा की। यह यात्रा वेदितम इंडिया फाउंडेशन की ओर से ‘मूविंग अपस्ट्रीम: सिंध’ फेलोशिप के तहत हुई थी।