प्रकृति

अवैध रेत खनन की वजह से बिहार की नदियां हो रही है तबाह

इस साल, बिहार सरकार ने, नदियों से बालू निकासी के मौसमी प्रतिबंध को बढ़ा दिया। लेकिन राज्य भर में रोजाना धड़ल्ले से बालू की अवैध निकासी हो रही है।
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<p>बिहार के भोजपुर जिले में सोन नदी के किनारे लगी इन नावों में अवैध तरीके से निकाली गई रेत को भरा जाता है। (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)</p>

बिहार के भोजपुर जिले में सोन नदी के किनारे लगी इन नावों में अवैध तरीके से निकाली गई रेत को भरा जाता है। (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)

बिहार में भोजपुर जिले के कोईलवर नदी क्षेत्र की मुख्य सड़क से तकरीबन चार से पांच किलोमीटर अंदर, दोपहर की तेज धूप में एक दर्जन मजदूर, सोन नदी के एक हिस्से में खुदाई कर रहे हैं। मेन रोड से इस जगह को देखा नहीं जा सकता है। गर्मी की वजह से मजदूरों ने अपने आधे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं पहन रखा है, वे फावड़े-कुदाल से खुदाई करके रेत इकट्ठा कर रहे हैं और एक बड़ी सी नाव पर उसे लोड कर रहे हैं। 

गंगा की इस प्रमुख सहायक नदी के किसी भी किनारे के ऊपरी या निचले हिस्से पर नजर डालें तो ऐसे ही हालात हर जगह नजर आते हैं। कई अन्य मजदूर सूरज डूबने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि उसके बाद इस काम के लिए अगली पाली शुरू होनी है। और तब यह काम इससे भी बड़े स्तर पर होगा। 

उन मजदूरों में से एक ने कहा, “हम बड़ी नावों पर रेत भरने और उतारने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। दिन के समय, कुछ मजदूर यहां रेत की निकासी का काम करते हैं लेकिन असली और बड़े स्तर का काम यहां रात में ही शुरू होता है।” 

अपने शरीर के पसीने को एक पतले सूती तौलिये से पोछते हुए एक अन्य मजदूर ने इस बारे में आगे बताया, “रेत-खनन पर प्रतिबंध को देखते हुए जेसीबी और पोकलेन मशीनें अंधेरा होने के बाद आती हैं।” मशीनों के जरिए बड़े पैमाने पर रेत की निकासी, केवल रात में ही की जा सकती है। 

बिहार में पिछले कुछ वर्षों से, बालू के खनन पर 1 जुलाई से 30 सितंबर तक रोक लगा दी गई है। इस साल, 1 जून से ही बालू का खनन प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके कारण निर्माण कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले रेत की भारी कमी हो गई। इससे कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ, नतीजतन अवैध रेत खनन में तेजी आ गई।

Manual extraction of sand from a river bank
नदी के किनारे से मजदूरों द्वारा रेत निकाला जा रहा है (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)

अवैध खनन के धंधे से जुड़े एक युवा सुपरवाइजर का कहना है कि कागज पर रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है लेकिन असलियत इससे बिल्कुल अलग है। अवैध खनन का यह कारोबार भोजपुर जिले के सुदूर इलाके सुरौंधा टापू में चल रहा है। यह सोन के किनारे अवैध रेत खनन का अड्डा है, लेकिन इसके जैसे कई अन्य अड्डे भी हैं। 

वह बताते हैं, “बाहरी लोगों को इस दुरूह इलाके और सोन नदी के आसपास के इस तरह के स्थानों में दिन के समय में भी प्रवेश की अनुमति नहीं है। रात में मशीनों द्वारा किए जाने वाले बालू के अवैध खनन और कैसे सैकड़ों नावों को रेत से भरकर पटना, सारण और वैशाली जिलों में भेज दिया जाता है, यह सब देखना, बाहरी लोगों के लिए जोखिम भरा है।” 

इस रिपोर्ट के लिए द् थर्ड पोल से बात करने वाले ज्यादातर लोगों की पहचान इसलिए जाहिर नहीं की जा रही है क्योंकि इससे उनकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। 

अवैध बालू खनन के भंडारण के लिए राज्य भर में कई जगहों पर बालू माफियाओं ने बड़े-बड़े टीले बना रखे हैं। 

इस अवैध व्यापार का खामियाजा सोन नदी को भुगतना पड़ा है। सैकड़ों नाव, ट्रैक्टर, ट्रक और खुदाई करने वाले, रेत निकालने वाले, लोड करने वाले और इसे राज्य के दूसरे स्थानों पर पहुंचाने के लिए इंतजार करते नजर आते हैं।

बालू का छोटा सा व्यापार करने वाले एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के अनुसार सारण जिले के पहलेजा घाट और जानकी घाट पर सोन से प्रतिदिन 200 से अधिक नाव, गंगा के तट पर उतारी जाती हैं, लेकिन मुख्य गंतव्य डोरीगंज घाट है, जो पहलेजा से करीब 40 किमी है, जहां रोजाना 1,000 से ज्यादा नाव उतारी जाती हैं। ये सभी स्थान निचले क्षेत्र हैं, जहां सोन, गंगा से मिलती है।

Sand mined illegally on a large scale at night is loaded onto boats during the day in Pahleja Ghat
रात में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से निकाली की गई रेत को पहलेजा घाट में, दिन में, नावों पर लाद दिया जाता है। (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)

रेत की अवैध निकासी का तंत्र

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, रेत निकासी के मामले में चीन और भारत सबसे नाजुक गढ़ हैं क्योंकि ये दोनों देश वैश्विक स्तर पर बुनियादी ढांचे और निर्माण में भी विश्व स्तर पर अगुवाई करते हैं। रेत निकासी की दर, प्राकृतिक तौर पर दोबारा इसकी पूर्ति होने की दर से कई गुना अधिक है। सोन की पीली रेत को सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली रेत माना जाता है और इसकी मांग बहुत उच्च है। इसे स्थानीय स्तर पर “गोल्डेन” या “पीला सोना” कहा जाता है।

बिहार में रेत खनन के पैमाने को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारे पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे यह पता चले कि कितने क्षेत्र में बालू के खनन का काम होता है और राज्य में कितना बालू निकाला जाता है।”

पुलिस और खान विभाग यानी माइंस डिपार्टमेंट के अधिकारियों के बार-बार, ऐसे दावों के बावजूद कि उन्होंने इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की है, इस कारोबार का एक बड़ा हिस्सा अवैध है।

खान विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि प्रतिबंध हो या न हो, राज्य भर की नदियों में रोजाना बालू का अवैध खनन होता है। उन्होंने यह भी कहा कि बालू माफियाओं, स्थानीय नेताओं, ठेकेदारों, अपराधियों, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच मजबूत सांठगांठ के चलते बालू की अवैध निकासी बेरोकटोक जारी है।

बीएसपीसीबी के मेंबर सेक्रेटरी एस. चंद्रशेखर का कहना है कि मजबूत लोगों की यह सांठगांठ बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन के कारोबार को चलाती है, जो बिना अधिक निवेश के मोटा पैसा कमाने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इससे राज्य के खजाने की आय का बड़ा नुकसान होता है और संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है।

चंद्रशेखर कहते हैं, “अवैध रेत खनन को रोकना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि पैसा ही सब कुछ चलाता है। रेत माफिया के पास पैसा और बाहुबल दोनों है।”

अकेले भोजपुर में, जिला खनन अधिकारी आनंद प्रकाश का कहना है कि पिछले तीन महीनों में 1,123 वाहन और 600,000 क्यूबिक फुट से अधिक रेत जब्त की गई, 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया और पुलिस में 133 शिकायतें दर्ज की गईं। लेकिन पुलिस की मिलीभगत के कई आरोप हैं।

पहलेजा घाट पर, अवैध रेत कारोबार से जुड़े कुछ ठेकेदारों का आरोप है कि सोनपुर पुलिस स्टेशन को 150 से अधिक बालू से लदे ट्रकों को गुजरने देने के लिए प्रतिदिन 800,000 से 900,000 रुपये का भुगतान किया गया।

Labourers unload Sone sand at Pahleja Ghat
पहलेजा घाट पर सोन रेत को उतारते मजदूर (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)

पिछले साल, बिहार के तत्कालीन माइंस एंड जियोलॉजी मिनिस्टर जनक राम ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि अवैध रेत खनन के कारण राज्य सरकार को लगभग 7 करोड़ रुपये का वार्षिक नुकसान होता है। लेकिन रेत माफिया के करीबी सूत्रों का अनुमान है कि अवैध रेत खनन, सालाना 20 करोड़ से 30 करोड़ रुपये से भी अधिक का है।

बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी लागू कर दी थी और उसकी कोशिश है कि रेत खनन से अपने राजस्व को बढ़ाकर, शराब की बिक्री से प्राप्त होने वाले करों की भरपाई कर ले। इसकी रेत नीति का उद्देश्य स्थायी, स्थानीय रोजगार पैदा करना भी है।

यदि आप नदी से रेत निकालते हैं, तो आप अपनी कब्र खुद खोद रहे हैं।
दिनेश कुमार मिश्रा, बिहार नदी विशेषज्ञ

लेकिन इस क्षेत्र में काम करना सुरक्षित नहीं है। सोन नदी के किनारे काम करने वाले एक मजदूर का कहना है कि उसे अपने जीवन का डर है। वह अपने से 30 से 40 फीट की सीधी ऊंचाई वाले रेत के टीलों की ओर इशारा करता है। खतरा यह था कि अगर यह ढह जाता तो वह मौके पर ही दफन हो सकता था। और ऐसी खबरें चल रही हैं कि हाल ही में बालू खनन के एक अवैध स्थल पर तीन मजदूरों की मौत हो गई थी क्योंकि रेत का एक बड़ा हिस्सा उन पर गिर गया था।

राज्य के माइंस एंड जियोलॉजी डिपार्टमेंट के अधिकारियों के अनुसार प्रतिबंध से पहले 38 में से 16 जिलों में बालू खनन चालू था। विभाग की योजना इसी साल 1 अक्टूबर से 28 जिलों में खनन शुरू करने की है।

पटना उच्च न्यायालय के एक वकील मणिभूषण प्रताप सेंगर का कहना है कि सरकार के लिए अवैध रेत खनन को रोकना लगभग असंभव है। वह कहते हैं, “एकमात्र तरीका रेत खनन को उचित तरीके से विनियमित करना और पर्यावरण के अनुकूल निकासी के लिए [राज्य की] 2019 रेत नीति को लागू करना है।”

पर्यावरण संबंधी चिंताएं

राज्य ने राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) पटना और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर से नदियों और पर्यावरण पर रेत खनन के प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया है। अब तक, सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है कि रेत खनन, एक स्थायी और “पर्यावरण के अनुकूल” तरीके से किया जाए। लेकिन इसकी व्यापक रूप से अनदेखी की गई है।

एनआईटी, पटना के जल संसाधन में विशेषज्ञता रखने वाले सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रामाकर झा कहते हैं कि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो रेत खनन बुरा नहीं है, लेकिन कहीं भी खनन करने और किसी भी समय खनन करने और किसी भी मात्रा में खनन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। किसी विशेष स्थान पर रेत की उपलब्धता के बारे में विश्वसनीय आंकड़े होने चाहिए, और कितनी गहराई तक रेत का खनन होना चाहिए और कितनी मात्रा में रेत निकाली जानी चाहिए, इसको रेगुलेट किया जाना चाहिए, लेकिन “अभी तक, यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण गायब है, क्योंकि इस पर हमारा कोई अध्ययन नहीं है”।

बिहार में एक नदी विशेषज्ञ और एक एनजीओ बाढ़ मुक्ति अभियान के संयोजक दिनेश कुमार मिश्रा ने द् थर्ड पोल से कहा कि नासमझी से होने वाला रेत खनन, बड़े पैमाने पर रेत माफिया की अवैध गतिविधियां, राज्य में सोन और अन्य नदियों को नष्ट कर रही हैं। 

वह कहते हैं, “यह वैज्ञानिक रूप से स्थापित है कि एक नदी का तल स्पन्ज की तरह होता है और इसमें शुष्क गर्मी के दौरान भी पानी होता है। यदि आप नदी से रेत निकालते हैं, तो आप अपनी कब्र खुद खोद रहे हैं।”

Illegal sand mining is damaging the banks of the Sone River
रेत खनन, सोन नदी के तट को नुकसान पहुंचा रहा है (फोटो: मोहम्मद इमरान खान)

रिवर एक्टिविस्ट रंजीव कहते हैं कि लगातार होने वाले रेत खनन ने कुछ नदियों को हमेशा के लिए सूखने के कगार पर धकेल दिया है। वह कहते हैं, “सोन, गंगा और अन्य नदियों में नदी तलों की मशीनों से खुदाई से खाई और बड़े गड्ढे बन गए हैं। यह नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित कर रहा है और जलीय आवासों को खतरे में डाल रहा है।”

मिश्रा का कहना है कि बहुत अधिक निकासी से आस-पास के इलाकों में पानी का स्तर कम हो जाएगा। एनवायरमेंट एक्टिविस्ट गोपाल कृष्ण चेतावनी देते हैं, “निकट भविष्य में पीने के पानी की एक बड़ी समस्या हो सकती है। ऐसे इलाकों के आसपास के गांव, हमारे जीवनकाल में ही भूतिया जगह बन जाएंगे।”