दक्षिण एशिया के देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बहुत ज़्यादा संवेदनशील हैं। साल 2022 में सूखे और बाढ़ जैसी आपदाओं से पूरे क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ था। पाकिस्तान में जून और अक्टूबर के बीच आई विनाशकारी बाढ़ ने अनुमानित रूप से हर सात लोगों में से एक को प्रभावित किया था और कम से कम 1250 बिलियन रुपयों का नुकसान हुआ। पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में, भारी बाढ़ ने सैकड़ों हजारों लोगों की आजीविका को विस्थापित और नष्ट कर दिया। इस साल, द् थर्ड पोल ने न केवल इन आपदाओं के कारणों की गहराई से पड़ताल की है, बल्कि इसके अन्य क़ीमतों पर ज़ोर देते हुए ये समझाने की कोशिश की है कि इन आपदाओं से आजीविका कैसे प्रभावित होती है।
हमने ख़ास तौर पर इस बात पर रोशनी डालने की कोशिश की है कि कैसे जलवायु परिवर्तन महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है। पानी की बढ़ती कमी और यह सुनिश्चित करने के लिए कि परिवार के पास पर्याप्त पानी है, लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से उनके परिवारों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। हमने कई बार ये रिपोर्ट किया है कि लोग अपने बदलते परिवेश के अनुकूल होने के तरीके खोजते रहते हैं – लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है।
यहां, हम 2022 की चार स्टोरीज़ को हाईलाइट कर रहे हैं जो दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन और लोगों के जीवन और आजीविका के बीच संबंधों पर ज़ोर देती है।
लगातार जलवायु आपदाओं के बावजूद असम में कई लोग नहीं चाहते पलायन
आत्रेयी धर, मार्च
असम में जलवायु संबंधी आपदाओं से प्रभावित होने वाले ज़्यादातर लोग आपदाओं के बावजूद अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं। बल्कि वो कई लोग नई आजीविका और इन समस्याओं से मुकाबला करने की रणनीति विकसित करते हैं। तटीय बांग्लादेशी घरों के 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि 88 फीसदी ने “जलवायु के खतरे वाले क्षेत्रों” में रहने के बावजूद प्रवास नहीं चुना। असम के रूपाकुची गांव के लोगों के लिए पलायन का मतलब है अपने सामाजिक संबंधों और नेटवर्क को खो देना होगा जो अक्सर उन्हें आपदाओं के बाद जीवित रहने में मदद करते हैं। असम जलवायु परिवर्तन के प्रति ज़्यादा संवेदनशील है। लोगों ने बताया कि 30 सालों तक बाढ़ देखते-देखते, उन्हें अब ऐसे हालातों में जीने की आदत हो गई है।
कई परिवारों ने द् थर्ड पोल से फरवरी 2020 में कहा था कि शहरों में जाकर बसने और भोजन पर पैसे खर्च करने की जगह वो अपने नदी के गाद द्वारा पोषित खेतों में उगाए गए भोजन को खाना ज़्यादा पसंद करेंगे। जिन लोगों के पास खेत नहीं है वो लोग सब्ज़ी बेचने, मछली पालन करने, पोल्ट्री फॉर्म खोलने जैसे अन्य उपक्रमों पर विचार कर रहे हैं। इस गांव के लोग दूसरों के लिए काम करने के विकल्प को नहीं अपनाना चाहते हैं।
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लगातार जलवायु आपदाओं के बावजूद असम में कई लोग नहीं चाहते पलायन
सृष्टि क़ाफ़ले, मई
पश्चिमी नेपाल विशेष रूप से जलवायु आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। क्षेत्र में सूखा, बाढ़ और सूखे झरने निर्वाह कृषि को प्रभावित कर रहे हैं। इसकी वजह से मौजूद गरीबी और कुपोषण को बढ़ा रहा है। खाद्य संकट की कई मीडिया रिपोर्टों के बाद सृष्टि काफ़ले ने बाजुरा ज़िले का दौरा किया। वहां उन्हें पता चला कि महिलाओं और बच्चों को अक्सर इन समस्याओं का खामियाजा भुगतना पड़ता है, जो उच्च शिशु मृत्यु दर में भी परिलक्षित होता है।
क़ाफ़ले की रिपोर्ट के अनुसार, बाजुरा में पानी की बढ़ती कमी मौजूदा चुनौतियों को बढ़ा रही है। लंबे समय तक सूखा और अप्रत्याशित मॉनसून की बारिश लोगों के लिए खाने के लिए पर्याप्त भोजन उगाना मुश्किल बना रही है। बाजुरा में तापमान अप्रत्याशित होने के कारण तापमान बढ़ने और बारिश होने का अनुमान है, संगठनों का कहना है कि आगे की त्रासदी को रोकने के लिए अनुकूलन पहल के साथ-साथ सरकारी समर्थन की आवश्यकता है।
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पानी की किल्लत से बुंदेलखंड में महिलाओं की ज़िंदगी हो रही है मुश्किल
जिज्ञासा मिश्रा, जुलाई
मध्य भारत के सूखा-प्रवण बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी की कमी की वजह से महिलाओं पर बोझ बढ़ता जा रहा है। पारंपरिक रूप से यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मदारी महिलाओं की है कि परिवार के पास पर्याप्त पानी है। एक एनजीओ का अनुमान है कि उस क्षेत्र के कुछ हिस्सों में 70% तक महिलाएं पानी की भारी कमी से प्रभावित हैं।
द् थर्ड पोल की संवाददाता जिज्ञासा मिश्रा ने बुंदेलखंड के बरुआ गांव का दौरा किया और रिपोर्ट किया कि कैसे महिलाएं पानी की कमी के कारण होने वाली कठिनाइयों से परेशान हैं। उन्हें बोरवेल तक पहुंचने के लिए दूर तक पैदल चलने के लिए मजबूर किया जाता है जो अभी तक सूख नहीं पाया है। पानी की कमी के वजह से स्वच्छता संबंधी समस्याएं प्रभावित हैं। सरकार का दावा है कि क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त है लेकिन स्वच्छता संबंधी समस्याएं अभी भी मौजूद हैं। वहां भूगोल और जेंडर की समस्याएं जाति की वजह से और जटिल हो जाती है, मिश्रा रिपोर्ट करते हैं।
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जलवायु परिवर्तन की वजह से गंगा डेल्टा में स्कूल छोड़ रहे हैं बच्चे
चीना कपूर, अक्टूबर
चक्रवात प्रभावित सुंदरबन से लेकर सूखाग्रस्त बांग्लादेश तक, जलवायु परिवर्तन गंगा डेल्टा में बच्चों की शिक्षा को प्रभावित कर रहा है। बार-बार होने वाली आपदाएं – चाहे चक्रवात के बाद सलिनिज़ेशन हो, या सूखे के कारण पानी की कमी हो – सब कृषि को प्रभावित करती हैं। फसल की गिरती पैदावार से प्रभावित परिवारों की आय और खाद्य सुरक्षा उन पर वित्तीय दबाव बढ़ा रहा है।
सुंदरबन में, द् थर्ड पोल के संवाददाता ने रिपोर्ट दी है कि संपत्ति के नष्ट होने और बार-बार आने वाले चक्रवातों से आजीविका छिन जाने के कारण, लोगों को अपने बच्चों को खिलाने में मुश्किल हो रही है, कई लोगों को अपनी बेटियों को स्कूल से निकालने और उन्हें शादी के लिए मजबूर करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। समस्या लड़कों को अलग तरह से प्रभावित करती है, क्योंकि वे दूसरे भारतीय राज्यों में काम की तलाश में गाँव छोड़ देते हैं। सीमा के उस पार, राजशाही, बांग्लादेश के सूखा-प्रवण क्षेत्र में, बढ़ता तापमान लड़कियों की शिक्षा के लिए समान बाधाएं पैदा कर रहा है।
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