डेढ़ महीने से भी अधिक समय तक चलने वाले आम चुनाव के बीच भारत लू से भी गुज़र रहा है। चुनाव में लगभग एक अरब मतदाता शामिल हैं और इस बीच तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से पार कर गया है।
माना जा रहा है कि इस चुनाव में बढ़त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से भाजपा के घोषणा पत्र में जलवायु परिवर्तन का उल्लेख ना के बराबर है।
घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन का उल्लेख केवल एक बार किया गया है। इसका ज़िक्र सस्टेनेबिलिटी पर केंद्रित अंतिम भाग में है। इसमें तटीय इलाकों में रहने वाले समुदायों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम बनाने के लिए प्रयास की बात कहीे गई है। भाजपा के घोषणापत्र के अधिकांश अध्यायों की तरह यह अध्याय भी आशावादी है। इसमें क्लाइमेट स्मार्ट और क्लाइमेट रेजिलिएंट जैसे वाक्यांशों का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इसका क्या मतलब है, इसे मापने योग्य कोई संकेत नहीं दिया गया है या यह भी नहीं बताया गया है कि सरकार कैसे काम करेगी। मात्र एक नकारात्मक संक्षिप्त टिप्पणी है कि हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं की संख्या बढ़ गई है।
स्थिरता अध्याय में विशिष्ट लक्ष्यों की भी उपेक्षा की गई है, सिर्फ इसका उल्लेख है कि 2029 तक 60 शहरों में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। इसके अलावा, 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने की दिशा में” काम करने लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन इसका विवरण नहीं दिया गया है कि इसे कैसे हासिल किया जाएगा।
सत्ता में आने के बाद कैसे बदल गए भाजपा के घोषणापत्र
2024 का भाजपा का घोषणा पत्र उसके 2014 के घोषणापत्र के विपरीत है। दस साल पहले सत्ता में आने से ठीक पहले इसने कुछ खास उपायों का वादा किया था। इनमें वायु प्रदूषण से निपटने के लिए स्वच्छ ईंधन की पेशकश, परियोजनाओं का पारिस्थितिक ऑडिट, शहरों और कस्बों के प्रदूषण सूचकांक के साथ ही सामाजिक वानिकी के विस्तार के वादे इत्यादि शामिल थे।
एक सेक्शन हिमालय को समर्पित था। इसमें हिमालय पर राष्ट्रीय मिशन शुरू करना, एक अंतर-सरकारी साझेदारी, हिमालयी स्थिरता कोष और हिमालयी प्रौद्योगिकी को समर्पित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने जैसे विशिष्ट मुद्दे शामिल थे। इनमें से केवल पहली प्रतिबद्धता को पूरा किया गया है।
पांच साल सत्ता में रहने के बाद 2019 में पूरी तरह से जलवायु परिवर्तन उसके घोषणापत्र से गायब हो गया। इस शब्द का उल्लेख केवल एक बार भारत की नवीकरणीय ऊर्जा की प्रभावी स्थापना के संदर्भ में किया गया था। इसका एकमात्र विशिष्ट लक्ष्य भारत के 102 सबसे प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण को ‘अगले पांच वर्षों में कम से कम 35 फीसदी कम करना’ था।
आईक्यू एयर के अनुसार, 2019 में भारत में 2.5 माइक्रोमीटर व्यास (पीएम 2.5) से कम के कणों की वार्षिक औसत सांद्रता 58.1 थी, जो वायु प्रदूषण का सबसे खतरनाक रूप है। भारत में वर्ष 2019 में यह (पीएम 2.5) 58.1 था। 2020 में यह घटकर 51.9 हो गया, फिर अगले साल वापस बढ़कर 58.1 हो गया। यह फिर से गिरकर 53.3 पर आ गया और फिर 2023 में थोड़ा बढ़कर 54.4 पर पहुंच गया। दूसरे शब्दों में वायु प्रदूषण में मात्र छह फीसदी तक कमी आई, लेकिन यह स्थायी प्रवृत्ति नहीं थी। इसके अलावा, 2017-23 के दौरान दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 भारत में ही थे।
2019 के घोषणापत्र में पर्यावरण से एक अलग सेक्शन हिमालय को दिया गया था, लेकिन जो वादा किया गया था, वह ‘जंगलों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए’ हिमालयी राज्यों को ‘हरित बोनस’ था।
यह पर्याप्त नहीं रहा है। जिस समय भारत में मतदान हो रहे हैं, जंगलों की आग ने उत्तराखंड को तबाह कर दिया है। इस भारतीय हिमालयी राज्य में ऐसी आपदाओं की आशंका बनी रहती है। पिछले पांच वर्षों में उत्तराखंड में जंगलों की आग में भारी गिरावट केवल कोविड-19 महामारी के दौरान देखी गई थी।
यदि भाजपा का 2024 का घोषणा पत्र जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रकाश डालता है, तो यह सरकार में एक दशक रहने के बाद की मौजूदा चुनौतियों को भी दर्शाता है। यह उसके 2014 के घोषणापत्र में प्रस्तुत महत्वाकांक्षी और विशिष्ट एजेंडे के बिल्कुल विपरीत है। लगता है कि अपनी पिछली प्रतिज्ञाओं को पूरा करने में लगातार असमर्थ रहने के कारण पार्टी अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के बजाय उसे कम करने के लिए बाध्य हुई है।
भारतीयों के लिए दांव पर क्या है
लेकिन भारत और उसके नागरिक जलवायु परिवर्तन से निपटने में अपने लक्ष्यों को कम करने का जोखिम नहीं उठा सकते। वर्ष 2021 में, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर ने अनुमान लगाया था कि 80 प्रतिशत भारतीय (लगभग 1.1 अरब लोग) मौसम से जुड़ी चरम आपदाओं एवं समुद्री आपदाओं वाले बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में रहते हैं।
नवीनतम शोध से संकेत मिलता है कि पहले हीट वेव मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान में स्थित सिंधु घाटी में रहने वाले 2.2 अरब लोगों को प्रभावित करेंगी। यह असहनीय गर्मी पैदा करके लोगों को मार डालेगी। तटीय इलाकों में 25 करोड़ लोग रहते हैं, जिनका जिक्र भाजपा के घोषणापत्र में किया गया है। ये देश की आबादी का पांचवां हिस्सा और दुनिया की आबादी का 3.5 प्रतिशत हैं। और, ये ही लोग चक्रवात और बाढ़ के बढ़ते खतरे, खेतों में खारे पानी के भरने, जलवायु परिवर्तन के मत्स्य पालन पर नकारात्मक असर और सूखे के प्रभावों का तेजी से सामना कर रहे हैं।
हालांकि इनमें से कुछ अनुमान भविष्य के लिए हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर पहले ही मानसून पर पड़ने लगा है। लगभग एक चौथाई भारतीय जिलों को पिछले 40 वर्षों में कम और अत्यधिक वर्षा, दोनों को झेलना पड़ा है। इससे खास तौर पर कृषि पर काफी प्रभाव पड़ता है और चूंकि भारत की करीब दो-तिहाई आबादी कृषि पर निर्भर है, यह भारतीय आजीविका के साथ-साथ खाद्य और आर्थिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाला एकमात्र सबसे बड़ा कारक है।
लाखों भारतीय मतदान के लिए जब कतार में खड़े होते होंगे, तो निश्चित रूप से रोजगार, आपदा, स्वास्थ्य, विस्थापन जैसे मुद्दे उनके जेहन में घूमते होंगे। अगर भाजपा के घोषणापत्र में इन मुद्दों से निपटने के कम होते वादों को देखा जाए, तो लगता है कि भारत की प्रमुख पार्टी अपनी चुनौतियों को समझ चुकी है, इसलिए वह इसकी अनदेखी करने लगी है।