हाल के दिनों में जब भी पश्चिम नेपाल की महिलाएं आवाज उठाती हैं तो उन्हे लड़खड़ाती मुर्गी बोला जाता है। आज तक पहाड़ की महिलाओं ने ऐसा नहीं किया। इसे देखकर लगता है कि पहाड़ की हवा बदल रही है।
भारत-नेपाल की सीमा पर महाकाली नदी के आसपास रहने वाली महिलाओं को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों- भूस्खलन, बादल फटना, भयंकर सूखा, अत्यधिक बर्फबारी- जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है। उनके लिए आम बात हो गई है। जबकि उनके पति रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं। लेकिन अब वे अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और गैर-सरकारी संगठनों की मदद ने उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है।
इसके बावजूद यहां की महिलाएं संकोच करती हैं, जब हमारी महिला पत्रकार ने उनसे उनकी जिंदगी के बारे में सवाल पूछे तो लड़खड़ाते हुए जवाब दिया। लेकिन उनकी इस संकोचभरी हिचकिचाहट के पीछे उनकी बहादुरी, स्वतंत्रता, आत्मसम्मान, परस्पर निर्भरता, एकजुटता व साहस की कहानियां हैं। बेहद गर्व एवं प्रसंन्न्ता के साथ वे मुझे अपने द्वारा किए गए कामों को दिखाने के लिए हरे-भरे पहाड़ों की ओर ले गईं। अपने द्वारा बनाए गए पुल को दिखाया, वो पानी जिसकी गुणवत्ता की जांच करते हैं और वो स्कूल जिसे पीने के पानी की उपलब्धता करा रही हैं- ये सब दिखाया, ये सभी काम उन्होंने बिना किसी पुरुष के मदद के किए हैं।
अब वे महिलाएं पहाड़ों और नदियों को पार करके महिला सशक्तीकरण केन्द्र की ओर मीटिंग के लिए जाती हैं। तब कोई आदमी उन्हें ‘पोथी बासियों’, एक नेपाली कहावत, कहने की हिम्मत नहीं करता है।
उच्च हिमालय के शुरू होने से पहले महाकाली नदी धारचूला, धांदेलधुरा और बैतडी के पहाड़ों से होकर गुजरती है। जहां इसे शारदा कहा जाता है जो यह अंत में गंगा नदी में मिल जाती है।
धारचुला से कंचनपुरा तक फैला इलाका ऐसा है जहां पर मानव निर्मित कोई बड़ा निर्माण नहीं हुआ है, यहां अविरल बहने वाली नदी का अभी तक अस्तित्व है लेकिन इसकी अविरल बहाव की गुणवत्ता केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित पंचेश्वर बांध समाप्त कर सकता है। अत्यधिक भूकंपीय जोन में जल विघुत परियोजना से परंपरागत सिंचाई पर असर पड़ सकता है। साथ ही लुप्तप्राय गोल्डन माहसीर के मार्ग में भी अवरोध आ सकता है, जो 2018 के आईयूसीएन की रेडलिस्ट में है। पहाड़ी ट्राउट के राजा नाम से पहचान रखने वाली मछली भी बहुत ज्यादा और अवैध रेत खनन की वजह से पहले से ही विलुप्त होने की कगार पर है।
वर्तमान और भविष्य के होने वाले विकास कार्य से नेपाल के शुक्लाफंटा नेशनल पार्क को भी खतरा है। घास के मैदान, जंगल, वैटलैंड, आर्दभूमि हिमालय की तलहटी में फैले 305 वर्ग किमी के इको सिस्टम की खासियत हैं। यह क्षेत्र विशेष रूप से अन्योन्याश्रित पौधों और जानवरों के मामले में समृद्ध है।
महाकाली की महिलाएं
पहाड़ के कठिन जीवन ने इन महिलाओं को एकजुट किया है। यह प्रक्रिया एनजीओ ऑक्सफैम द्वारा महिला सशक्तिकरण केंद्र स्थापित करने के माध्यम से शुरू की गई है। इसकी TROSA (दक्षिण एशिया के ट्रांसबाउंड्री रिवर) पहल के साथ, धारचूला में संकल्प जैसे स्थानीय गैर- सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी में, RUDES (ग्रामीण) विकास और पर्यावरण प्रबंधन सोसाइटी) बैतड़ी में, RUWDUC (ग्रामीण महिला विकास और एकता केंद्र) दादेलधुरा में और कंचनपुर में NEEDS (राष्ट्रीय पर्यावरण और समानता विकास सोसाइटी) ने सहयोग किया।
पानी की समस्या पर ध्यान केंद्रीय करने के साथ, महिलाओं ने नेतृत्व कौशल, संयुक्त निर्णय लेने और सबसे महत्वपूर्ण अधिकारियों को क्या बताना है, जो उनके जीवन के कई पहलुओं को निर्धारित करता है, पर भी ध्यान दिया है। समस्या को साझा करना उनकी सबसे बड़ी सीख है। उनका मानना है इससे समस्याएं कम हो जाती हैं।
महिलाओं के लिए सदियों से चुप रहने की परंपरा को बदलना आसान नहीं था। पुरुषों ने महिलाओं को डब्लूईसी की मीटिंग में जाने से रोका। कहते हैं कि इससे कोई पैसा नहीं कमाए जा रहा है। बस समय बर्बाद हो रहा है। कुछ लोगों ने कहा कि ये सबका समय बर्बाद कर रही हैं। इन्हें अपने किचन में ही वापस में चले जाना चाहिए। बाकी लोगों ने भी चुपचाप विरोध किया लेकिन वो काम करते रहे।
महिलाओं ने विरोध से बचने के रास्ते निकाल लिए हैं। वे नदी के किनारे, पहाड़ी पर मिलने लगीं। यह कुछ महिलाओं के लिए आसान था क्योंकि उनके पति बाहर रहते थे, लेकिन उनके पास घर के काम और खेत की जिम्म्ेदारियों का दबाव था। जिसमें बाकी लोग उनकी मदद करते थे। इसके साथ ही कई लोगों के लिए यह मीटिंग आपस में साहचर्य, घर से बाहर के समाज को देखने और अपने समुदाय के लिए काम करने का मौका था।
महिलाएं और पानी
स्वाभाविक रूप से, महिलाएं महाकाली और उसकी सहायक नदियों द्वारा उनके जीवन में निभाई जाने वाली भूमिकाओं के बारे में अधिक जागरूक हो गईं। इनमें पानी पीने, खाना पकाने, स्नान करने, कपड़े धोने, सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने जैसे काम हैं। उन्होंने पानी पर अपने अधिकार के बारे में जाना। कुछ ने TROSA द्वारा वितरित बुनियादी जल गुणवत्ता परीक्षण किट का उपयोग करना सीखा। अन्य ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए नगर पालिकाओं को परीक्षण के बाद आए परिणामों का उपयोग करना सीखा। कुछ ने अपने पड़ोसियों से घर पर शौचालय बनाने का आग्रह किया। कुछ ने पानी पीने से पहले उबाल कर पीने के तौर पर सीखा।
नदी में रेत और पत्थर के अवैध खनन को रोकने के लिए, साथ ही साथ अवैध मछली पकड़ने के लिए हर रात वे कंचनपुर में महाकाली में गश्त करती हैं, जो काफी साहसिक काम था। अगर आधी रात को कोई भी महिला नदी के किनारे से आती है तो स्थानीय मेयर और पुलिस प्रमुख उन्हें तुरंत प्रतिक्रिया देना सीख लिया है।
सीआरओएसए के ”एनजीओ एनईईडीएस के किशन खडका कहते हैं कि इन गांवों की महिलाओं को नया सीखने की लत लग गई। जब महिलाओं ने यह समझा कि उनकी सीखने से उनकी स्वतंत्रता बढ़ सकती है, तो उन्होंने महीने में दो बार निर्धारित समय पर मिलना शुरू कर दिया। और उन दिनों, वे अपनी साथी महिलाओं से मिलने के लिए सभी घरेलू कामों को दोगुना गति से जल्दी पूरा कर लेतीं थी। एक महिला ने कहा, “हमें एहसास नहीं था कि हम सिर्फ रसोई के काम और चारा इकट्ठा करने से ज्यादा योगदान कर सकते हैं।”
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक काली देवी हैं जो नारी शक्ति का प्रतीक हैं। और महाकाली का अर्थ है महान काली माता हैं।
This work was supported by The Third Pole-Oxfam Shared Water Media Grants as part of the Transboundary Rivers of South Asia (TROSA) project funded by the Government of Sweden. Views expressed are solely those of the author