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साधु गंगा के लिए बलिदान देने को तैयार

हरिद्वार में पवित्र स्नान करने वाले लाखों लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि साधु उनके बगल में गंगा में बालू की कटाई से लड़ रहे हैं
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<p>कुंभ मेले में पहले शाही स्नान के लिए प्रार्थना करने के लिए लोग गंगा नदी के तट पर एकत्रित होते हैं [image by: REUTERS/Anushree Fadnavis]</p>

कुंभ मेले में पहले शाही स्नान के लिए प्रार्थना करने के लिए लोग गंगा नदी के तट पर एकत्रित होते हैं [image by: REUTERS/Anushree Fadnavis]

11 मार्च को हरिद्वार कुंभ में महाशिवरात्रि के मौके पर 22 लाख से अधिक लोगों ने मोक्ष की उम्मीद लिए गंगा में डुबकी लगाई। इसी दिन हरकी पैड़ी से करीब 7 किलोमीटर दूर एक संन्यासी अविरल गंगा के लिए जल त्याग कर बैठा था।

हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में गंगा किनारे मातृसदन आश्रम एक बार फिर गंगा की अविरलता-निर्मलता के लिए अनशन की राह पर है। आश्रम के प्रमुख स्वामी शिवानंद सरस्वती 13 मार्च से रोज़ाना सिर्फ चार गिलास पानी ले रहे हैं। आश्रम के संन्यासी स्वामी आत्मबोधानंद 23 फरवरी से अनशन कर रहे हैं। हरिद्वार प्रशासन की तरफ से  बातचीत की कोई पहल नहीं की गई। 8 मार्च को स्वामी आत्मबोधानंद ने जल भी त्याग दिया। कुंभ के समय जल का त्याग और उनकी सेहत बिगड़ने की आशंका पर 13 मार्च को हरिद्वार पुलिस-प्रशासन मातृसदन आश्रम पहुंच गया।

स्वामी आत्मबोधानंद को जबरन ज़िले के रामकृष्ण मिशन अस्पताल में भर्ती कराया गया। 13 मार्च को ही मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती ने भी अनशन शुरू कर दिया। वह 24 घंटे में सिर्फ चार गिलास पानी ले रहे हैं। 18 मार्च से पानी की मात्रा कम कर तीन गिलास कर दी। मातृसदन के ये दो साधु गंगा में खनन रोकने और अविरलता की मांग को लेकर अपने प्राण त्यागने को तैयार हैं।


19 मार्च को स्वामी आत्मबोधानंद हरिद्वार के रामकृष्ण अस्पताल से वापस आश्रम लौटे [image courtesy: Matri Sadan]

गंगा के लिए बलिदान देने को तैयार

स्वामी आत्मबोधानंद 19 मार्च को रामकृष्ण मिशन अस्पताल से आश्रम वापस लौटे। वह कहते हैं “मातृ सदन पिछले 22 साल से गंगा जी के लिए समर्पित होकर काम कर रहा है और इस क्रम में 3 संतों का बलिदान भी हो चुका है। कोई भी सरकार ये बात जानती है कि आज यदि हरिद्वार में हरियाली और वन भूमि बची है तो वो मातृ सदन के वजह से है। हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में बांध का विरोध हम कर रहे हैं। सरकार को पर्यावरण और गंगा प्रेमियों से कोई मतलब नहीं है। सरकार खनन और बांध माफिया की करीबी हो जाती है। माफिया के इशारे पर काम करती है”।

गंगा की खातिर स्वामी आत्मबोधानंद का ये आठवां अनशन है। वर्ष 2014 में उन्होंने पहली बार अनशन किया था।

आश्रम में बेंत की कुर्सी पर बैठे, सरकार से हुई अब तक की बातचीत के दस्तावेज़ों को उलट-पुलट रहे स्वामी शिवानंद सरस्वती आक्रोश में कहते हैं “सरकार अगर अगर हमारी मांगें नहीं मानेगी तो हमारा बलिदान ले। हमारे आश्रम ने पहले भी बलिदान दिया है। अब भी बलिदान देंगे। हरिद्वार में गंगा को पूरी तरह खत्म करने के लिए खनन किया जा रहा है। यह सबसे ज्यादा खतरनाक है। बांध को तोड़ देंगे तो गंगा अपने सामान्य बहाव में आ जाएगी। लेकिन खनन गंगा के स्वरूप को बदल देगा”।

स्वामी शिवानंद प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले पत्र दिखाते हैं। “ये विडंबना है कि भारत में प्रधानमंत्री कार्यालय ने हमारे लिखे पत्रों का संज्ञान लिया। हमारी मांगों पर कार्रवाई की बात लिखी। जलशक्ति मंत्रालय ने भी गंगा में खनन न करने के लिए हरिद्वार प्रशासन को निर्देश दिए। लेकिन उत्तराखंड सरकार इन निर्देशों को मानने के लिए तैयार नहीं है”।

तांबे का एक गिलास स्वामी शिवानंद के सामने की मेज़ पर रखा है। इसी से वो रोज़ाना चार गिलास पानी ले रहे हैं। कहते हैं, “हमने शुरुआत में अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और उसकी सहायक नदियों पर बांध न बनाने का आग्रह किया था। बाद में हमने चार बांधों तपोवन-विष्णुगाड, तपोवन- पीपलकोटी, सिंगोली-भटवाड़ी और फाटा-ब्यूंग हाइड्रो पावर को बंद करने की बात कही। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा-एनएमसीजी ने हमसे वादा किया कि चारों परियोजना बंद करेंगे। ऋषिगंगा में आपदा आई तो पता चला कि तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था। सरकार ने हमारी बात नहीं मानी। प्रकृति ने मान ली”। स्वामी शिवानंद प्रधानमंत्री कार्यालय और एनएमसीजी से मिले पत्रों को दिखाते हैं।


व्हील चेयर पर बैठी साध्वी पद्मावती की शारीरिक-मानसिक स्थिति सामान्य नहीं है [image by: Varsha Singh]

मातृसदन आश्रम में मौजूद साध्वी पद्मावती व्हील चेयर पर बैठी हैं। 25 मार्च 2020 में वह दिल्ली एम्स से वापस मातृसदन आश्रम लायी गई। बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय से फिलॉस्फ़ी में बैचलर डिग्री लेने वाली 25 वर्षीय साध्वी की शारीरिक और मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। वह चलने-फिरने में असमर्थ तो है ही। उसकी आवाज़ भी तकरीबन ख़ामोश हो गई है। डॉक्टरों ने उसे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर बताया है।

साध्वी पद्मावती वर्ष 2017 में मातृ सदन आश्रम से जुड़ी थीं। स्वामी शिवानंद कहते हैं कि आश्रम में रहते हुए साध्वी को कभी कोई समस्या नहीं हुई। मातृसदन की गंगा पर बांध और खनन से जुड़ी मांगों को लेकर साध्वी ने 15 दिसंबर 2019 को अनशन शुरू किया था। 30 जनवरी को हरिद्वार प्रशासन ने रात करीब 11:30 बजे साध्वी को आश्रम से निकाल कर देहरादून अस्पताल में भर्ती कराया। आधी रात को साध्वी को अस्पताल ले जाने का वीडियो भी साझा किया गया था। जिसमें वो खुद को इस तरह रात में ले जाने का विरोध कर रही थी। इसके बाद 17 फरवरी को हालत बिगड़ने की बात कहकर दिल्ली एम्सले जाया गया।

साध्वी जब अस्पताल से वापस लौटी तो व्हील चेयर पर थी। स्वामी शिवानंद बताते हैं कि अस्पताल में पहले नाक के ज़रिये ऑक्सीजन दिया गया था। फिर गले में छेद कर ऑक्सीजन पाइप डाली गई। इसके बाद उनकी आवाज बेहद कमज़ोर हो गई। स्वामी शिवानंद के कहने पर साध्वी ने बेहद धीमी आवाज़ में कुछ सवालों के संक्षिप्त जवाब दिए।

क्या गंगा के लिए दोबारा अनशन करोगी तो साध्वी ‘हां’ में सिर हिलाती है। गंगा के लिए बलिदान दोगी तो वह ‘हां’ कहती है। स्वामी शिवानंद का आरोप है कि अस्पताल में उसे विष दिया गया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक मेधा पाटकर ने भी 10 मार्च को मातृ सदन की इस तपस्या को अपना समर्थन दिया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि वर्ष 2014 में मां गंगा की रक्षा का वचन मोदी सरकार भूल गई है। मातृसदन के संत सरकार के इस वादे को नहीं भूले। स्वामी आत्मबोधानंद के जल त्याग पर वह लिखती हैं “क्या कोई सुनेगा?”

14 मार्च 2021 को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मातृ सदन आए और स्वामी शिवानन्द के सत्याग्रह का समर्थन किया।

जल पुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह कहते हैं गोमुख से गंगा सागर तक ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो गंगा के लिए प्राण देने बैठा हो। “स्वामी शिवानंद सरस्वती प्राणों से प्यारी गंगा की खातिर प्राण देने के लिए प्रो जीडी अग्रवाल से पीछे नहीं है। चमोली आपदा में दो बांध टूटे। इन्हें रुकवाने के लिए हमने कई बार कोशिश की। लेकिन सरकार हम जैसे साधारण लोगों की बातें नहीं सुनती”। हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा में खनन को लेकर कहते हैं कि वह पूरा क्षेत्र गंगा के एक विशेष मोड़ (curve) पर है। जो गंगा का इकोलॉजिकली सेंसेटिव ज़ोन है। इसके कुछ हिस्से राजाजी टाइगर रिजर्व की सीमा के अंदर भी आते हैं।

मातृसदन की गंगा से जुड़ी 4 प्रमुख मांगें

गंगा और उसकी सहायक नदियों (भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, धौली गंगा, नंदाकिनी) पर मौजूदा और प्रस्तावित सभी बांध रद्द किए जाएं।

हरिद्वार समेत मैदानी क्षेत्रों में गंगा किनारे खनन और जंगल काटने पर रोक लगे।

गंगा के हित में फ़ैसले लेने के लिए गंगा भक्त काउंसिल का गठन हो।

गंगा संरक्षण के लिए गंगा एक्ट लागू किया जाएगा। 

23 वर्षों से अविरल गंगा के लिए अनशन की राह

वर्ष 1997 में हरिद्वार में मातृ सदन की स्थापना हुई। आश्रम के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती बताते हैं कि आश्रम का ये 65वां अनशन है। 3 मार्च 1998 को दो संत स्वामी गोकुलानंद सरस्वती और स्वामी निगमानंद सरस्वती ने हरिद्वार में कुंभ क्षेत्र को क्रशिंग और खनन से मुक्त घोषित करने की मांग के साथ पहला अनशन शुरू किया था। अपने अनशन के दौरान आश्रम के संत जेल भी जा चुके हैं और वहां भी अनशन किया। 152 दिन, 163 दिन, 170 दिन, 194 दिन, आश्रम के संतों के अनशन कई-कई दिनों तक चले।

20 जुलाई 2010 से 24 अगस्त 2010 तक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने पहली बार मातृ सदन के संत के रूप में अनशन शुरू किया। वे आईआईटी कानपुर के विभागाध्यक्ष और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सदस्य सचिव रह चुके थे। 36 दिनों तक चले उनके अनशन के बाद तत्कालीन सरकार ने तीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पाला मनेरी, लोहारीनागपाला और भैरों घाटी को निरस्त किया था।

19 फरवरी से 13 जून 2011 तक स्वामी निगमानंद सरस्वती का अंतिम सत्याग्रह हुआ। 27 अप्रैल को हरिद्वार ज़िला प्रशासन उन्हें अस्पताल ले गया था। 13 जून 2011 को अस्पताल में ही उनकी मृत्यु हुई। तब भी मातृ सदन ने ज़हर देकर उन्हें मारने का आरोप लगाया।

अनशन की इस श्रृंखला में 13 जून 2013 को प्रो जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद ने गंगा की तीन मुख्य धाराओं भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी पर सभी निर्माणाधीन और प्रस्तावित बांधों को समाप्त करने की मांग के साथ तपस्या शुरू की। वो अनशन 122 दिन चला। इस दौरान प्रो अग्रवाल जेल भी भेजे गए और दिल्ली एम्स में भी भर्ती हुए।

14 फरवरी से 14 मार्च 2014 तक स्वामी शिवानंद जी ने अनशन किया। उत्तराखंड पर्यावरण प्रभाव आंकलन प्राधिकरण ने शासनादेश जारी किया कि नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ की अनुमति के बिना राजाजी राष्ट्रीय पार्क की सीमा के 10 किलोमीटर के अंदर खनन नहीं किया जा सकता।

2014 जुलाई में ही स्वामी आत्मबोधानंद के अनशन के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी ने हरिद्वार में गंगा में खनन बंद करने का लिखित आश्वासन दिया। गंगा से स्टोन क्रशर हटाने के लिए भी जिलाधिकारी ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखा।

वर्ष 2015 में हरिद्वार में गंगा में खनन का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल- एनजीटी में भी गया। एनजीटी ने अवैध खनन रोकने के लिए आदेश दिए।

वर्ष 2016 में उत्तराखंड सरकार ने रायवाला से भोगपुर के बीच दोबारा खनन शुरू करने के आदेश दिए गए। इसके विरोध में जनवरी 2016 में आश्रम के स्वामी शिवानंद ने अनशन शुरू किया। 11 दिनों के अनशन के बाद उत्तराखंड में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रायवाला से भोगपुर के बीच के क्षेत्र में खनन पर रोक लगाने की अधिसूचना जारी की।

इसी क्रम में, 22 जून 2018 से 11 अक्टूबर 2018 तक स्वामी सानंद ने अनशन किया। इस दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी मातृ सदन आयीं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फ़ोन पर उनसे बात की। लेकिन उनकी मांगें नहीं मानी गईं। 11 अक्टूबर 2018 को ऋषिकेश एम्स में उनकी मृत्यु हुई।

स्वामी सानंद की बांधों पर रोक लगाने की मांगों को लेकर स्वामी आत्मबोधानंद ने तपस्या को आगे बढ़ाया। 24 अक्टूबर 2018 से 4 मई 2019 तक 194 दिन वह अनशन पर रहे। उन्हें भी हरिद्वार प्रशासन ने आश्रम की मर्जी के बगैर ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया। अस्पताल से लौटकर उनकी तपस्या जारी रही। 4 मई को एनएमसीजी के निदेशक राजीव रंजन मिश्रा के लिखित आश्वासन के बाद उन्होंने अनशन को विराम दिया।

आश्वासनों पर कार्रवाई होता न देख, 15 दिसंबर 2019 से 30 जनवरी 2020 तक साध्वी पद्मावती ने आश्रम में अनशन किया। इस बीच केंद्र सरकार से उनकी मांगे पूरी करने के आश्वासन मिलते रहे। इन आश्वासनों पर अनशन को बीच-बीच में विराम दिया गया।

स्वामी शिवानंद और स्वामी आत्मबोधानंद ने मातृ सदन आश्रम की अनशन की ये परंपरा जारी रखी है। मातृ सदन पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्ष कर रहा है।

25 फरवरी 2021 को गंगा में खनन दोबारा शुरू 

23 फरवरी को स्वामी आत्मबोधानंद ने अनशन शुरू किया और 25 फरवरी को हरिद्वार में गंगा में खनन खोल दिया गया। उत्तराखंड वन विकास निगम के रीजनल मैनेजर उमेश कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर तक के क्षेत्र में गंगा में खनन खोल दिया गया है। उन्होंने बताया कि केंद्र से अनुमति मिलने के बाद ये फैसला लिया गया है। वर्ष 2018, 2019 और 2020 में गंगा के इस खास क्षेत्र में खनन नहीं हुआ। जबकि अन्य हिस्सों पर खनन किया गया था।

गंगा में खनन पर आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट

गंगा में रायवाला से भोगपुर के बीच खनन होना चाहिए या नहीं और नदी पर इसका क्या असर पड़ेगा? एनएमसीजी ने आईआईटी कानपुर से ड्रोन के ज़रिये इसका सर्वेक्षण कराया। इस सर्वे को करने वाले आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा बताते हैं “हमने नदी के पिछले 50 वर्षों के हिस्टॉरिकल डाटा और 2020 में ड्रोन के ज़रिये मिले नदी के डाटा का अध्ययन किया। हमने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि रायवाला-भोगपुर के बीच सैंड माइनिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन ये भी कहा है कि उस क्षेत्र में सेडिमेंट (उप-खनिज) मैनेजमेंट की स्ट्रेटेजी होनी चाहिए। कुछ जगहें ऐसी हैं जहां से सेडिमेंट हटाना है और नदी को बहने देना। नदी का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र में राजाजी टाइगर रिजर्व के अंदर आता है। उस हिस्से को आप छू भी नहीं सकते। वहां कई इकोलॉजिकल हॉट स्पॉट हैं”।

प्रो राजीव सिन्हा सेडिमेंट मैनेजमेंट पर ज़ोर देते हैं। वह बताते हैं कि हिमालयी नदियों में 20-25 वर्ष पहले जितना सेडिमेंट लोड आता था, अब उससे दस गुना ज्यादा सेडिमेंट आता है। उपर के क्षेत्र से जंगल कट रहे हैं तो सेडिमेंट ज्यादा निकल रहा है। पर्वतीय क्षेत्र से उतरने के बाद गंगा हरिद्वार में समतल होने लगती है। यहां सेडिमेंट ज्यादा जमा होता है। इसलिए नदी से वैज्ञानिक आधार पर सेडिमेंट मैनेजमेंट जरूरी है।

एनएमसीजी में रियल टाइम इनफॉर्मेशन स्पेशलिस्ट पीयूष गुप्ता ने आईआईटी कानपुर के इस अध्ययन से जुड़ी कुछ जानकारियां विज्ञान प्रसार की नेट पत्रिका पर साझा की हैं। वह बताते हैं कि हिस्टॉरिकल रिमोट सेन्सिंग डाटा के साथ ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल के ज़रिये गंगा के रायवाला-भोगपुर बेल्ट में खनन की स्थिति समझने के लिए अध्ययन किया गया। जिसमें कई हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए हैं। जो ये बता सकें कि ज्यादा सैंड माइनिंग से नदी की morpho dynamics में बदलाव आ सकता है। वह बताते हैं कि ड्रोन सर्वे हमें उन ख़ास (specific) जगहों के बारे में सटीक जानकारी दे रहा है जो सैंड माइनिंग से प्रभावित हुए हैं।

पीयूष बताते हैं कि आईआईटी कानपुर इस रिपोर्ट को देश के अलग-अलग संस्थानों को रिव्यू के लिए भेजा गया है। उनके रिमार्क्स मिलने के बाद एनएमसीजी ये रिपोर्ट एनजीटी को सबमिट करेगा।

2 सितंबर 2020 को एनएमसीजी के डायरेक्टर राजीव रंजन मिश्रा ने मातृ सदन के स्वामी शिवानंद को अनशन समाप्त करने के लिए पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने आईआईटी कानपुर के ज़रिये रायवाला-भोगपुर में गंगा में रेत खनन और उसके पर्यावरणीय असर का जिक्र किया। उन्होंने लिखा कि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को खनन की पर्यावरण अनुमति देने पर फिर से विचार करने को कहा गया है।

आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के बावजूद हरिद्वार में प्रतिबंधित क्षेत्र में गंगा खनन शुरू कर दिया गया है।

मातृ सदन का संघर्ष अनशन के ज़रिये गंगा को बचाने के लिए है। जिस में एक ख़ास दिन डुबकी लगाने के लिए दुनियाभर से लोग जुटते हैं और लौट जाते हैं।