नई दिल्ली में जी 20 नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी दिसंबर तक चलने वाले जी 20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान अपने लक्ष्यों और प्राथमिकताओं को बताते हुए एक लेख प्रकाशित किया था। उनके आलेख का एक बड़ा हिस्सा जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित था।
उन्होंने लिखा, “हमारा मानना है कि क्या नहीं किया जाना चाहिए के विशुद्ध प्रतिबंधात्मक रवैये से हटकर जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए क्या किया जा सकता है, इस पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिक रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।”
जलवायु परिवर्तन पर उनके इस तरह जोर डालने का मतलब स्पष्ट है। यह वैसी ही गंभीर चुनौती है, जिनसे निपटने के लिए जी 20 का गठन किया गया था। यह ग्लोबल साउथ (विकासशील एवं गरीब देशों) के लिए एक बड़ा खतरा है, और मोदी उस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती से निपटने में मदद के लिए जी 20 का इस्तेमाल करने के इच्छुक हैं। जलवायु परिवर्तन से लड़ाई भी भारत एवं अधिकांश अन्य जी 20 सदस्यों के लिए घरेलू एवं विदेश नीति की शीर्ष प्राथमिकता है और यह यूक्रेन युद्ध की तरह कोई भयावह भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं है। इसके अलावा पिछले वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद से, जिसमें जलवायु-संवेदनशील देशों के लिए हानि एवं क्षति कोष स्थापित करने के लिए समझौता हुआ था, ग्लोबल साउथ में जलवायु संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए धनी देशों के एक साथ आने के विचार के इर्द-गिर्द एक नया वैश्विक मानदंड उभरा है।
हैरानी की बात नहीं कि शनिवार को प्रकाशित शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य में जलवायु परिवर्तन पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया गया है। “सतत भविष्य के लिए हरित विकास समझौता” खंड आठ पृष्ठों का है, जो किसी भी अन्य विषय से अधिक लंबा है और इसमें स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन तथा उत्सर्जन में कटौती से लेकर जलवायु वित्त और प्लास्टिक प्रदूषण तक के विषय शामिल हैं।
फिर भी जलवायु के मामले में दिल्ली डिक्लेरेशन अब भी उम्मीद से कमतर है। इसमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए व्यापक प्रतिज्ञाएं शामिल हैं, लेकिन अधिकांश विशिष्ट लक्ष्य या समय-सीमा की पेशकश नहीं करते हैं। इसके अलावा, दस्तावेज़ स्वयं जी 20 देशों के लिए कोई विशिष्ट शमन योजना और लक्ष्य निर्धारित नहीं करता है। बल्कि, इसमें ज्यादा ध्यान वैश्विक शमन प्रयासों में योगदान देने पर है: “हम वैश्विक नेट जीरो जीएचजी उत्सर्जन/कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं” और “मौजूदा लक्ष्यों और नीतियों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के प्रयासों को आगे बढ़ाएंगे और प्रोत्साहित करेंगे।”
इसमें कोई संदेह नहीं है कि सदस्य देशों की अलग-अलग राष्ट्रीय परिस्थितियां होने के कारण घरेलू स्तर पर साझा योजना और लक्ष्य निर्धारित करना कठिन है। लेकिन इसका मतलब जी 20 को विकसित और विकासशील सदस्यों के लिए अलग-अलग साझा उत्सर्जन कटौती लक्ष्य तय करने से रोकना नहीं है।
यह एक कटु सच्चाई है कि हरित ग्रह को बढ़ावा देने की वास्तविक प्रतिबद्धताओं के बावजूद, जी 20 के कई सदस्य अब भी पुरानी और अस्वच्छ ऊर्जा आदतों से बंधे हुए हैं। इससे उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की प्रतिज्ञाओं को कायम रखने की संभावनाएं कम हो जाती हैं, और यह समझाने में मदद मिलती है कि दिल्ली डिक्लेरेशन की कई जलवायु प्रतिबद्धताएं अस्पष्ट क्यों हैं।
पिछले वर्ष जी 20 सदस्यों ने जीवाश्म ईंधन पर रिकॉर्ड राशि खर्च की। ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर के अनुसार, पिछले सात वर्षों में कई जी 20 देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में भारी वृद्धि देखी गई, जिसमें इंडोनेशिया (56%), तुर्किये (41%), चीन (30%) और भारत (29%) शामिल हैं। कई जी 20 सदस्य, विशेष रूप से चीन और भारत, कोयले पर बहुत अधिक निर्भर हैं, हालांकि एम्बर के अनुसार, 2022 में ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया शीर्ष दो जी 20 कोयला आधारित ऊर्जा के प्रदूषक थे। उन्होंने वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक उत्सर्जन किया।
निश्चित रूप से, कई जी 20 देशों ने न केवल उत्सर्जन कम करने का वादा किया है, बल्कि उस लक्ष्य की दिशा में ठोस कदम भी उठाए हैं। हालांकि, अस्वच्छ ईंधन पर निरंतर निर्भरता ने उस लक्ष्य को कमजोर कर दिया है, और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और अधिक मजबूत कदम उठाने के लिए जी 20 के भीतर प्रोत्साहन को कमजोर कर दिया है।
वर्तमान जी 20 अध्यक्ष और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता भारत एक गंभीर केस स्टडी प्रस्तुत करता है। ग्लासगो में 2021 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में मोदी ने 2070 तक भारत को नेट जीरो उत्सर्जन वाला राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया। तब से उनकी सरकार और भारत के निजी क्षेत्र ने देश में कार्बन संक्रमण को शुरू करने के लिए कई नीतियों को लागू किया है। अकेले पिछले छह महीनों में, प्रमुख भारतीय समूहों ने नए स्वच्छ ऊर्जा निवेश का वादा किया है, और विद्युत मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह अगले पांच वर्षों के लिए 50 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता के लिए बोलियां स्वीकार करेगा। नई दिल्ली ने शीर्ष सरकारी स्वामित्व वाली हाइड्रोकार्बन कंपनियों को उनके स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए अरबों डॉलर की सहायता देने का वादा किया है। सरकार ने पांच साल तक कोयला आधारित नए बिजली संयंत्र नहीं बनाने का भी वादा किया है।
इसके अलावा, नई दिल्ली ने अपने नवोदित नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने के इरादे का संकेत दिया है। इसने सौर ऊर्जा भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रिसिटी बैटरी बनाने वाली कंपनियों को अगले सात वर्षों तक 217 अरब रुपए के सब्सिडी पैकेज का प्रस्ताव दिया है, लेकिन यह हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भी सब्सिडी दे रही है। सरकार ने अपने हरित हाइड्रोजन क्षेत्र को विकसित करने के लिए 167 अरब रुपए देने का वादा किया है, और यह हरित हाइड्रोजन से प्राप्त हरित अमोनिया पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।
सामान्य प्रतिबद्धताओं के बजाय विशिष्ट लक्ष्यों और समय-सीमाओं के साथ प्रतिज्ञाएं निर्धारित करने से कोई हानि नहीं होती है। ऐसा नहीं होना इस बात का संकेत हो सकता है कि कई जी 20 सदस्यों की ऐसी प्रतिज्ञाओं को बरकरार रखने में असमर्थ है।
लेकिन गंदी आदतें बड़ी मुश्किल से छूटती हैं। कोयला भारत के बिजली उत्पादन में 75% और कुल ऊर्जा उत्पादन में 70% योगदान करता है। पिछले नौ वर्षों में कोयला उत्पादन में लगभग 50% की वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष, राज्य के स्वामित्व वाली कोल इंडिया ने, जिसका भारत के कोयला उत्पादन में 80% योगदान है, 17 वर्षों में पहली बार अपने वार्षिक उत्पादन लक्ष्य को पार कर लिया। और यह आगे भी पूरी गति से उत्पादन कर रही है। जनवरी में, 22 कंपनियों ने देश भर की 18 विभिन्न कोयला खदानों से कोयला निकालने के लिए 35 बोलियां लगाईं। मार्च में, भारत के कोयला मंत्री ने भविष्यवाणी की थी कि 2026 तक भारत कोयले से इतना समृद्ध हो जाएगा कि वह इसका निर्यात शुरू कर सकेगा।
यह सिर्फ कोयले की ही कहानी नहीं है। जुलाई 2022 और 2023 के बीच घरेलू पेट्रोलियम उत्पादन में लगभग 4% और प्राकृतिक गैस में 8% से अधिक की वृद्धि हुई।
इसके अलावा, भारतीय कंपनियों में नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन की जो चर्चाएं चल रही हैं, वह आसान नहीं होगा। भारत के रिजर्व बैंक ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि भारत के शक्तिशाली औद्योगिक और कृषि क्षेत्र, जो भारत के कुल उत्सर्जन में प्रमुख योगदान करते हैं, एक हरित अर्थव्यवस्था में बाधा बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त, भारत की कार्बन कर दर दुनिया में सबसे कम होने के कारण, कई कंपनियां लागत को आसानी से निगल सकती हैं और नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि नहीं कर सकती हैं।
जी 20 का संयुक्त बयान बाध्यकारी नहीं है। सामान्य प्रतिबद्धताओं के बजाय विशिष्ट लक्ष्यों और समय-सीमाओं के साथ प्रतिज्ञाएं निर्धारित करने से कोई हानि नहीं होती है। ऐसा नहीं होना इस बात का संकेत हो सकता है कि कई जी 20 सदस्यों की ऐसी प्रतिज्ञाओं को बरकरार रखने में असमर्थ है और जलवायु परिवर्तन में सबसे पहले योगदान देने वाली बहुत ही प्रदूषणकारी नीतियों के प्रति उनके निरंतर लगाव को दर्शाता है।