जलवायु

कैसे बायोइंजीनियरिंग ने एक हिमालयी सड़क को बाढ़ से बचाया

हर मौसम में लोगों को कनेक्टिविटी की सुविधा देने के लिए एक प्रमुख सरकारी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके तहत हिमाचल प्रदेश में असुरक्षित ढलानों को धंसने से बचाने और स्थिरता बनाये रखने की खातिर बायोइंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग किया गया।
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<p>धर्मशाला के पास 14 अगस्त 2023 को भूस्खलन से सड़क के क्षतिग्रस्त होने के बाद लोग खुदाई करने वाले मशीन को मलबा हटाते हुए देख रहे हैं। भारी मानसूनी बारिश के कारण भारत के हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ और भूस्खलन के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य इस आपदा में फंस गए थे। (फोटो: अश्विनी भाटिया / एपी द्वारा अलामी)</p>

धर्मशाला के पास 14 अगस्त 2023 को भूस्खलन से सड़क के क्षतिग्रस्त होने के बाद लोग खुदाई करने वाले मशीन को मलबा हटाते हुए देख रहे हैं। भारी मानसूनी बारिश के कारण भारत के हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ और भूस्खलन के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य इस आपदा में फंस गए थे। (फोटो: अश्विनी भाटिया / एपी द्वारा अलामी)

उत्तर भारत में 14 अगस्त, 2023 को भारी बारिश हुई। इस कारण अचानक बाढ़ आई और भूस्खलन हुए। इससे काफी तबाही हुई। हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश के कोठी गेहरी गांव के सरपंच (प्रधान) किशोरी लाल ने उस दिन की घटनाओं को याद करते हुए डायलॉग अर्थ को बताया : “स्टेट हाईवे से जुड़ने वाली हमारी लिंक रोड और उस सड़क के किनारे के कुछ घर, पूरी तरह से तबाह हो गए थे।” लेकिन बायोइंजीनियरिंग के मदद से एक रास्ता निकला।

पर्यटकों के बीच लोकप्रिय सुरम्य झील वाला शहर रिवालसर में मूसलाधार बारिश के कारण कई जल निकायों में पानी भर जाने से उनके किनारे टूट गए। इसके बाद आई बाढ़ और भूस्खलन ने किशोरी लाल के गांव में घरों को बर्बाद कर दिया। इससे बस्तियों को खाली करना पड़ा। बाहरी दुनिया से संपर्क टूट गया। सड़कें जलमग्न हो गईं। मंडी-रिवालसर-कलखर रोड और लिंक रोड के बंद होने से बड़ी संख्या में पर्यटक फंस गए। स्थानीय लोग बाहरी दुनिया से अलग-थलग पड़ गए

इसी अव्यवस्था के बीच बिलासपुर जिले के एक गांव नोग ने कठिनाइयों से जूझने की अपनी क्षमता दिखाई। अधिकारियों के अनुसार, कोठी गेहरी और उसके आसपास सहित पूरे क्षेत्र की सड़कें लंबे समय बंद रहीं। लेकिन नोग की ओर जाने वाली सड़क एक सप्ताह से भी कम समय में आवागमन के लायक बन गई थी।

इसकी वजह एक नए दृष्टिकोण में निहित है: सॉइल बायो इंजीनियरिंग। 
पारंपरिक तौर पर दस फीट ऊंची कंक्रीट की दीवारों का उपयोग सड़कों को पहाड़ी ढलानों से बचाने के लिए किया जाता है। हालांकि तेज बारिश के दौरान इस तरह की संरचनाओं से खुली ढलानों के कटाव की आशंका रहती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

लोकल गवर्निंग बॉडी या स्थानीय शासी निकाय नोग पंचायत के उपाध्यक्ष संजीव डोगरा भूस्खलन के खतरे के बारे में बताते हैं कि हमारी सड़क हर मॉनसून में भूस्खलन का शिकार होती थी। इससे आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा पैदा होता था। बायोइंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग करने से पहले नोग की सड़क औसतन हर मौसम में महीने भर बंद रहती थी।   

मिट्टी को मज़बूत बनाने के लिए नई खोज 

इस मामले में निर्णायक मोड़ 2010 में आया, जब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत नोग के नए लिंक रोड पर दो स्थानों पर असुरक्षित ढलानों को स्थिर करने के लिए बायो इंजीनियरिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 2000 में शुरू किया गया पीएमजीएसवाई एक प्रमुख सरकारी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य पूरे देश भर में सड़क संपर्क से कटे ग्रामीण समुदायों को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करना है। 

हिमाचल प्रदेश रोड एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीआरआईडीसीएल) के परियोजनाओं के निदेशक पवन कुमार शर्मा इस दृष्टिकोण के बारे में समझाते हुए कहते हैं, हमने नोग के पास भूस्खलन संभावित क्षेत्र की सतह को तारों का जाल बनाकर ढक दिया। और उसके ऊपर ग्रिड के भीतर झाड़ियां और घास लगा दी। शर्मा 2010 में लोक निर्माण विभाग में कार्यकारी अभियंता थे, जब प्राधिकरण ने नोग परियोजना को लागू किया था। वह कहते हैं, “जहां स्थानीय नदी के कटाव के कारण भूस्खलन हुआ था, वहां हमने मिट्टी को बांधने के लिए झाड़ियों की बाड़ और मजबूत लकड़ी के पौधे लगाए।”

इस हरित बाड़ ने एक ही मौसम में जड़ें जमा लीं और धीरे-धीरे ढलानों को मजबूत किया, जो पिछले साल की बाढ़ के प्रभावों को बेहतर ढंग से झेलने में सक्षम थे।

Motorcycle parked on a road below a slope covered in vegetation
नोग तक का पहुंच मार्ग, जो अगस्त, 2023 में आई भीषण बाढ़ के एक सप्ताह के भीतर आवागमन को लायक बन गया था। ढलान को जाल से ढक दिया गया था और लेहसुनिया (मानसोआ एलियासिया) और खैर (सेनेगलिया कैटेचू) जैसी झाड़ियां और स्थानीय तौर पर काटल के नाम से जानी जाने वाली घास लगाई गई थी, जिनकी जड़ों ने भारी बारिश के दौरान मिट्टी को बहने से रोकने में मदद की। (फोटो: संजीव डोगरा)

सड़कों के लिए अहम हैं पौधे

विश्व बैंक की वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ नेहा व्यास, बायोइंजीनियरिंग को हरित बुनियादी ढांचे के एक उपसमूह के रूप में परिभाषित करती हैं और ढलान की स्थिरता को बढ़ाने के लिए वनस्पति का उपयोग करके पर्यावरणीय खतरों को कम करने में इसकी भूमिका पर जोर देती हैं।

इस पारिस्थितिक इंजीनियरिंग तकनीक में मिट्टी को स्थिर करने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षात्मक क्षमता को बढ़ाने के लिए वनस्पतियों को रणनीतिक रूप से रोपना और अन्य कार्बनिक पदार्थों को शामिल करना शामिल है। पौधों और उनकी जड़ प्रणालियों के प्राकृतिक गुणों का उपयोग करके, मृदा बायोइंजीनियरिंग पर्यावरणीय खतरों को कम करने और लैंडस्केप की बहाली को बढ़ावा देने के लिए एक स्थायी और किफायती दृष्टिकोण प्रदान कर सकती है। यह उपाय विशेष रूप से नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और भूस्खलन व बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त क्षेत्रों में प्रभावी है।

व्यास बताती हैं कि हिमाचल प्रदेश में सड़कों के किनारे ढलानों को स्थिर करने के लिए कैच ड्रेन्स, गेबियन वाल एवं अन्य सरल सिविल इंजीनियरिंग संरचनात्मक तत्वों के संयोजन में बांस जैसे जीवित और मृत दोनों प्रकार के पौधों का उपयोग किया गया था। 

नोग बायोइंजीनियरिंग वाली पहल विश्व बैंक की सहायता से संचालित 250 से अधिक पहाड़ी सड़क खंडों में से पहली थी। जुब्बल पंचायत के अध्यक्ष दलीप चौहान पिछले अगस्त की विनाशकारी बाढ़ के दौरान स्टेट हाईवे 10 पर कम नुकसान का हवाला देते हुए इसकी प्रभावशीलता की पुष्टि करते हैं।

अधिक पानी को सोख कर बायोइंजीनियर्ड ढलान कटाव, पानी जमना और क्षति को कम कर सकते हैं
विश्व बैंक की वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ नेहा व्यास

व्यास कहती हैं, “यदि उचित जांच और विश्लेषण के बाद मृदा बायोइंजीनियरिंग को डिजाइन किया जाता है और निष्पादन के दौरान इसकी निगरानी की जाती है, तो यह प्रभावी ढंग से सड़कों के किनारे कटाव को नियंत्रित करता है, जो सड़क के नाजुक हिस्से को बचाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यहां तक कि यह भारी बारिश के दौरान भी मदद करता है, जो कि जलवायु परिवर्तन के कारण आम बात हो गई है।” 

वह आगे कहती हैं, “मृदा बायोइंजीनियरिंग सड़क किनारे के ढलानों की स्थिरता में भी सुधार करती है, जिससे भूस्खलन का खतरा कम होता है और लोगों एवं संपत्ति की सुरक्षा में इजाफा होता है। बहुत अधिक पानी को अवशोषित करके बायोइंजीनियरिंग वाली ढलानें बहाव और उसके परिणामस्वरूप कटाव, जलजमाव और नुकसान को कम करती हैं।” 

इसके अलावा, व्यास का दावा है कि वनस्पति की उपयुक्त प्रजातियों का चयन करने से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण, वन्यजीवों के लिए आवास निर्माण, पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा क्षमता में वृद्धि और स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के अतिरिक्त स्रोत बढ़ सकते हैं।

सड़क के किनारे लगाई गई घास की कटाई से नोग की 38 वर्षीया एक  पशुपालक सोनाली को अब जंगल का बार-बार चक्कर नहीं लगाना पड़ता, जहां यह प्रजाति आम तौर पर पाई जाती है। उसने डायलॉग अर्थ को बताया, “सड़क के किनारे चारे के रूप में इस्तेमाल की जा सकने वाली वनस्पतियों को लगाना हमारे लिए दोगुना उपयोगी है। मुझे अपनी ज़रूरत का लगभग आधा चारा सड़क के किनारे से मिलता है। मेरी इच्छा है कि ऐसी प्रजातियां इस इलाके की सभी सड़कों के किनारे लगाई जाएं।”

बेहतर क्रियान्वयन ज़रूरी है 

मृदा बायोइंजीनियरिंग कटाव से निपटने और ढलानों को स्थिर करने में उपयोगी साबित हो सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता अंततः सावधानीपूर्वक योजना बनाने, उसे उचित ढंग से लागू करने और तैयार हो रहे ढांचे के रखरखाव पर निर्भर करती है।

वैसे तो भारत की राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) देश भर में राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, लेकिन राज्य के राजमार्गों और लिंक सड़कों की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की है।

विशेषज्ञों ने हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग चौड़ीकरण परियोजनाओं के लिए पहाड़ियों को काटने की “अवैज्ञानिक” प्रथाओं की आलोचना की है, और उन्हें पिछले साल के कुछ सबसे खतरनाक भूस्खलन में योगदान देने वाला एक महत्वपूर्ण कारक बताया है। शर्मा इस बात पर जोर देते हैं कि कैसे पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क की खुदाई से जमीन पर भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

शर्मा कहते हैं, ”पहाड़ी को काटने से मिट्टी के कटाव का रास्ता खुल जाता है।”

View of rubble and loose soil below a road barrier in a forest
मॉनसून के दौरान मिट्टी का कटाव रोकने के अलावा, सड़कों के किनारे वनस्पति लगाने से किसानों के लिए चारे और औषधीय जड़ी-बूटियों के स्रोत के रूप में अतिरिक्त लाभ हो सकते हैं। (फोटो: अश्विनी भाटिया, एपी अलामी द्वारा)

यह मौजूदा हिमाचल प्रदेश सड़क परिवर्तन परियोजना और हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा परियोजना, दोनों के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में बायोइंजीनियरिंग के बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है।

हालांकि, समस्याएं तब पैदा होती हैं, जब बायोइंजीनियरिंग स्पेसिफिकेशंस पर कम ध्यान दिया जाता है या उसे पर्याप्त ढंग से लागू नहीं किया जाता है,  जैसा कि राष्ट्रीय राजमार्ग 5 के परवाणू-सोलन खंड में देखा गया है।

बेहतर ढंग से घास उगाने की जरूरत को पहचानने के बावजूद ठेकेदार अक्सर प्रभावशीलता से ज्यादा लागत को प्राथमिकता देते हैं, जिसके चलते कार्यान्वयन आधा-अधूरा होता है। एनएचएआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डायलॉग अर्थ को बताया कि परवाणू के आसपास एक पायलट पहल पर केवल 40-50 फीसदी हिस्से में घास उगाई जा सकी थी।

इसे ज्यादा से ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए विशेषज्ञ एक बहुआयामी दृष्टिकोण की वकालत करते हैं, जो वनस्पति विकास को सुनिश्चित करता है। व्यास ने बताया कि “संरचनाओं के निर्माण के लिए इंजीनियरिंग डिजाइन सिद्धांतों को लागू करने के साथ बागवानी सिद्धांतों का उपयोग किया जाना चाहिए, जो पौधों के समुदायों की रक्षा करेंगे,  क्योंकि वे परिपक्व होने तक बढ़ते हैं और वे वैसे ही काम करेंगे, जैसे वे अपनी प्राकृतिक स्थिति में करते हैं।”

हिमाचल प्रदेश के बायोइंजीनियरिंग स्पेसिफिकेशंस के अनुसार ठेकेदारों को उन स्थलों की निगरानी और रखरखाव के लिए पर्यवेक्षकों को नियुक्त करने की आवश्यकता होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वनस्पति और अन्य बायोइंजीनियरिंग तत्व मनोनुकूल ढंग से बढ़ और विकास कर रहे हैं। 

शर्मा कम रखरखाव वाले स्वदेशी पौधों के चयन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं  कि पौधों का चयन करते समय उनके “सौंदर्य मूल्य, औषधीय मूल्य, वाणिज्यिक मूल्य और घास, जिनका उपयोग मवेशियों के लिए चारे के रूप में किया जा सकता है” को ध्यान में रखा जाना चाहिए। 

इसके बावजूद, रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि परवाणु-सोलन खंड पर बायोइंजीनियरिंग प्रयासों का दायरा सीमित था, जो व्यापक कार्यान्वयन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

पिछले साल के नुकसान को देखते हुए फरवरी 2024 में, राजमार्ग प्राधिकरण ने जलवायु परिवर्तन से प्रेरित वर्षा अप्रत्याशितता के बीच बायोइंजीनियरिंग में निवेश की तात्कालिक जरूरत को पहचानते हुए, मिट्टी को स्थिर करने के लिए 200 करोड़ रुपये की अतिरिक्त निविदाओं की पहल की। 

व्यास बायोइंजीनियरिंग में निवेश को “सुरक्षा और स्थिरता में निवेश” के रूप में वर्णित करती हैं, जो हार्डकोर इंजीनियरिंग और कम पर्यावरण-अनुकूल संरचनाओं की तुलना में बहुत अधिक किफायती और ज्यादा आकर्षक हैं।

जैसे-जैसे हिमाचल प्रदेश भावी जलवायु संबंधी अनिश्चितताओं से निपटने की तैयारी कर रहा है, मृदा बायोइंजीनियरिंग जीवन और आजीविका की रक्षा में मदद करने के लिए एक संभावित नवीन जीवन रेखा के रूप में उभर रही है।

शर्मा कहते हैं, “हालांकि प्रकृति को हराना असंभव है, लेकिन निश्चित रूप से हम बायोइंजीनियरिंग और इससे जुड़ी तकनीकों का उपयोग करके ऐसी सड़कें बना सकते हैं, जो यथासंभव जलवायु के भीषण प्रभावों को झेलने में सक्षम हों।”