रतन पथूरी अपने बरामदे के नीचे बाढ़ के बहते पानी को देखते हैं। पथूरी असम के गोलाघाट जिले के निकोरी गांव में रहते हैं, जो कि उफनती धनसिरी नदी के चलते जलमग्न हो गया है। बाढ़ के चलते पशुओं को सुरक्षित जगह पहुंचाने की आवश्यकता है और कई लोगों को यहां से निकालकर सुरक्षित आश्रय स्थलों में ले जाया गया है। यह मंजर तब का है, जब अगस्त में The Third Pole ने इस क्षेत्र का दौरा किया था। 31 वर्षीय पथूरी कहते हैं कि ऐसा हर साल होता है, जब बारिश के चलते धनसिरी उफान पर आती है, तब इलाके में बाढ़ आ जाती है। राहत इस बात की है कि इस साल हम घर में हैं और हमारा पलायन नहीं हुआ है। हर साल ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों जैसे धनसिरी के बेसिन में बाढ़ आती है। असम के पड़ोसी राज्य नागालैंड से निकलकर धनसिरी अपने दक्षिण तट पर ब्रह्मपुत्र में शामिल होने से पहले 352 किलोमीटर बहती है। इस दौरान, यह गोलाघाट जैसे निचले इलाकों से गुजरती है, जहां मानसून में इसका प्रवाह बढ़ जाता है।
![Raw material is transported via the river. With its tropical monsoon climate, the valley of Assam experiences heavy rainfall and is flooded almost every year. (Image ©SEEDS)](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/04-Context-SEEDS_2560px.jpg)
आवास का संकट
पथूरी का कहना है कि हाल के वर्षों में बाढ़ पहले से कहीं अधिक बार और तीव्रता से आती है। असम के निवासियों को यूं तो हर साल कई बार जलप्रलय का सामना करना पड़ता है, लेकिन 2017 की भीषण बाढ़ 28 वर्षों में सबसे अधिक विनाशकारी मानी जाने वाली थी।
बाढ़ और मूसलाधार बारिश की परिणाम स्वरूप अनेक समस्याओं में से एक निरंतर जलभराव का होना है। जलभराव आशिंक रूप से तटबंधों के निर्माण के कारण होता है, जो उफनती नदी के पानी से भूमि को डूबने से नहीं बचा पाते हैं। इसके उलट वे बाढ़ के पानी को वापस नदी में जाने से रोकने का काम करते हैं। पारंपरिक घरों को इस तरह की बाढ़ का सामना करने के हिसाब से डिजाइन नहीं किया जाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि वे ढह जाते हैं।
तटबंधों के निर्माण और पक्की बस्तियों के साथ खेतों के तेजी से प्रतिस्थापन ने आपदा के लिए सटीक इंतजाम कर दिया हैमनु गुप्ता, सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी
असम बाढ़, चक्रवात और भूकंप संभावित क्षेत्र है। एक एनजीओ सस्टेनेबल एनवायरनमेंट एंड इकोलॉजिकल डेवलपमेंट सोसाइटी (SEEDS) से जुड़े आर्किटेक्ट्स के मुताबिक, इन आपदाओं में बड़े पैमाने पर मकान ढह जाते हैं, जिसके चलते जानमाल का भारी नुकसान होता है। इसके कुछ कारक जिम्मेदार हैं जैसे- भूमि उपयोग परमिट का उल्लंघन, जिससे नदी के किनारे संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण कार्य होता है। इसके अलावा, पूर्व चेतावनी प्रणाली की कमी, आपदाओं से निपटने के लिए बेहद ही हल्की-फुल्की तैयारियां और तटबंध आदि भी शामिल हैं। प्राकृतिक आपदा इस समस्या का मात्र एक हिस्सा है।
![Flooded houses in](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/2CR7XMC-scaled.jpg)
सीड्स के सह-संस्थापक अंशु शर्मा बताते हैं, ”हमारा अनुमान है कि देश हर साल प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपने आवास स्टॉक का 1% गंवा देता है।”
यह भारतीय एनजीओ वर्ष 1994 से भारतीय उपमहाद्वीप में आपदा प्रबंधन और शमन पर काम कर रहा है। 2017 की बाढ़ के बाद से असम इसके प्रमुख क्षेत्रों में से एक बन गया।
सीड्स के सह-संस्थापक मनु गुप्ता कहते हैं, ”पूरे भारत में हमने देखा है कि लोग वहां घर बना रहे हैं, जहां पहले कभी नहीं बनाए गए। लोग कंक्रीट से आधुनिक मकान बनाने के लिए स्थानीय वास्तुकला को छोड़ रहे हैं। तटबंधों के निर्माण और पक्की बस्तियों के साथ खेतों के तेजी से प्रतिस्थापन ने आपदा के लिए सटीक इंतजाम कर दिया है।”
स्थानीय वास्तुकला एक प्रकार का निर्माण कार्य है, जिसमें स्थानीय सामग्री, संसाधनों और परंपराओं का उपयोग किया जाता है। इसमें जरूरत के हिसाब से विशेष क्षेत्रों के लिए विशिष्ट तरीकों का उपयोग किया जाता है।
स्थिति और बिगड़ सकती है। नवंबर, 2020 में प्रकाशित एक शोध से पता चलता है कि ब्रह्मपुत्र बेसिन में विनाशकारी बाढ़ की वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी 24-38% तक ही गलत हो सकती है। इसके सही होने के चांसेस ज्यादा हैं।
शोध के प्रमुख शोधकर्ता और कोलंबिया विश्वविद्यालय के लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी में पोस्टडॉक्टरल शोध वैज्ञानिक मुकुंद पी राव कहते हैं,”हमने वर्षा के पैटर्न का अनुमान लगाने के लिए ऊपरी ब्रह्मपुत्र बेसिन में ट्री रिंग ऑफ सेंचुरी का विश्लेषण किया। हमारे शोध से इस बात के संकेत मिले हैं कि हम 21वीं सदी के दौरान तीव्र मानसून की ओर बढ़ रहे हैं।” राव ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान बढ़ेगा, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे। इससे क्षेत्र में बाढ़ का खतरा वर्तमान की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ जाएगा।
जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए असम में स्टिल्ट हाउस
इस क्षेत्र के समुदाय बड़े मुद्दों पर नहीं, लेकिन उन चीजों से निपटने के लिए कदम उठा सकते हैं, जिन पर उनका नियंत्रण है जैसे- वे मकान जिसमें वे लोग रहते हैं, मिसिंग (जिन्हें मिरी भी कहा जाता है)। समुदाय के लोग परंपरागत रूप से निचले इलाकों में रहते हैं और उनके घर बाढ़ से निपटने के लिए खास तरीके से बने होते हैं, जिन्हें चांग घर के रूप में जाना जाता है। चांग घर यानी मिट्टी की नींव के सहारे बांस की स्टिल्ट्स पर बनीं बेहद साधारण झोपड़ियां हैं। यह अस्थायी होती हैं, जो करीब पांच साल तक चलती हैं। असम के कुछ हिस्सों में बार-बार आने वाली बाढ़ ने मकानों की अवधि को पहले से कम कर दिया है।
बांस का काम करने वाले स्थानीय बिल्डर पथूरी ऐसी ही एक झोपड़ी में रहते थे। उन्होंने बताया कि बार-बार आने वाली बाढ़ झोपड़ी की नींव की मिट्टी तक को बहा ले गई, जिससे स्टिल्ट्स सड़ गए। वर्ष 2017 की बाढ़ में मेरे पड़ोस के अन्य लोगों की तरह मेरी झोपड़ी में भी पानी भर गया। आखिरकार मुझे अपने परिवार को नाव से राहत आश्रय केंद्र में ले जाना पड़ा।
चांग घर 2.0 यानी मजबूत घर
अंशु शर्मा कहते हैं, ‘जब हमने 2017 में बाढ़ से हुए नुकसान का आकलन किया तो पाया कि एक ही जिले के कुछ इलाकों में दूसरों की तुलना में अधिक बाढ़ आ रही थी। मानसून और बाढ़ के बाद सितंबर 2017 में सीड्स ने स्थानीय बिल्डरों के साथ मिलकर इलाके के अनुकूल चांग घर की डिजाइन तैयार की। शर्मा बताते हैं कि चांग घर की डिजाइन तैयार करने से पहले हमने निर्माण स्थल के बाढ़ स्तर पैटर्न का अध्ययन किया और उसके बाद अपने चांग घर को तीन फीट ऊपर उठाया।
![Stilt house, Assam, India,](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/03-Exterior-SEEDS_2560px.jpg)
भारतीय बहुराष्ट्रीय समूह, गोदरेज ग्रुप और एक स्थानीय फील्ड पार्टनर की वित्तीय मदद से सीड्स ने रतन पथूरी जैसे स्थानीय बिल्डरों को अगले एक साल के भीतर इनमें से 80 घरों का निर्माण करने के लिए प्रशिक्षित किया। ये मकान कंक्रीट से बनी नींव पर रबरयुक्त बांस के स्तंभों पर टिके हुए हैं। मकान मालिक आवश्यकता पड़ने पर एक फ्लेक्सबल जॉइनरी सिस्टम के जरिये फर्श को और ऊंचा उठा सकते हैं, जबकि क्रॉस ब्रेसिंग बैम्बू सपोर्ट इन मकानों को बाढ़ और भूकंप से मजबूती देते हैं। ये इमारते करीब 23 वर्ग मीटर के मुख्य क्षेत्र पर बनी हैं।
![Stilt house made from bamboo in Assa, India, SEEDS](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/06-Construction-Process-SEEDS_2560px.jpg)
![Bamboo wall panels are made to decorate a stilt house, Assam, India, SEEDS](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/08-Community-Participation-SEEDS_2560px.jpg)
चांग घर 2.0 में शौचालय भी है
रतन पथूरी बताते हैं कि हमारी पुरानी झोपड़ी के विपरीत इसमें एक शौचालय भी है, जिससे बाढ़ के दौरान जीवन बहुत आसान हो जाता है। इन घरों को स्थानीय प्रजाति के मजबूत बांस और सामुदायिक भागीदारी से बनाने पर करीब 760 अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है, जोकि पारंपरिक चांग घर से करीब 20 प्रतिशत अधिक है। वहीं घर की मुख्य संरचना को तैयार करने में करीब सात दिन का वक्त लगता है।
वर्ष 2017 की बाढ़ में अपना घर गंवा देने वाले उमानंद पथूरी भी रतन पथूरी के साथ उसी समय अपने चांग घर 2.0 में चले गए। उनका कहना है कि मैं अपनी पत्नी, चार वर्षीय बच्चे और अपने माता-पिता के साथ रहता हूं। नए घर में हम सभी के लिए काफी जगह है। शुष्क मौसम में वे झोपड़ी के नीचे की जगह का उपयोग जानवरों और नावों को रखने के लिए करते हैं। वह बताते हैं कि मानसून में इमारत की ऊंचाई के चलते अब तक पानी घर में नहीं आ पाया है, जिससे घर सूखा रहा है। पिछले तीन सालों में करीब 10 अन्य ग्रामीणों ने स्वतंत्र रूप से घरों की नई डिजाइन को अपनाया है।
![New design of stilt house, Assam, India,](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/13-Stilt-SEEDS_2560px.jpg)
![A woman weaves underneath a stilt house, Assam, India,](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/14-Stilt-SEEDS_2560px.jpg)
कच्चे लेकिन मजबूत स्टिल्ट हाउस
सीड्स की ओर से बनाए गए चांग मकानों 2.0 ने सात से अधिक बार बाढ़ का सामना किया है। हालांकि, सरकार ने इन मकानों को कच्चे या फिर अस्थायी घरों की श्रेणी में रखा है। यह श्रेणी इस बात पर आधारित है कि क्या दीवारें और छत पक्की ईंट, बांस, मिट्टी, घास, नरकट, छप्पर और पत्थर आदि सामग्री से तैयार की गईं हैं। कच्चे घरों मे कंक्रीट से बने मॉर्डन मकानों की तुलना में समाजिक स्तर निम्न होता है। इसके अलावा एक चुनौती यह भी है कि कच्चे घरों को अस्थायी घर माना जाता है, इसलिए इसमें रहने वाले लोग इस पर बैंक से लोन नहीं ले सकते हैं।
इसके जवाब में सीड्स और उसके डोनर पार्टनर प्राइसवाटरहाउसकूपर्स इंडिया फाउंडेशन एक और बदलाव के साथ निकोरी गांव में एक मॉडल सामुदायिक राहत आश्रय का निर्माण कर रहे हैं।
मनु गुप्ता कहते हैं कि यह समुदाय के लिए एक बड़ा ढांचा है। इसलिए हमने पहले की तरह ही बांस के सुपरस्ट्रक्चर डिजाइन का इस्तेमाल किया है, लेकिन इमारत को अधिक स्थिर और भार उठाने के लिए मजबूती देने के लिए बांस की जगह कंक्रीट के पिलर लगाए हैं। इस नई डिजाइन में पाइप से पानी जैसी सुविधाओं की भी व्यवस्था की है। इस डिजाइन को अन्य बाढ़ संभावित क्षेत्रों में इसका अनुसरण किया जा सकता है।
![Inside a stilt house in Assam, India,](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/15-Interior-SEEDS_2560px.jpg)
गुप्ता के मुताबिक, कंक्रीट से बनी नींव और स्टिल्ट सस्ती स्थानीय सामग्रियों और पारंपरिक डिजाइन के साथ विभिन्न खूबसूरत सुपरस्ट्रक्चर को बनाने में सपोर्ट करेंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश और बाढ़ की घटनाएं चरम पर हैं, जिससे बाढ़ संभावित क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। ऐसे में सस्ते स्टिल्ट हाउस निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिए एक बेहतर समाधान हैं।
इस बीच, निकोरी के निवासी उमानंद का बच्चा बरामदे में खेलता है क्योंकि बाढ़ का पानी कम जाता है। उमानंद कहते हैं कि यह अच्छा घर है, अब मैं बहुत खुश हूं।
![A new design of stilt house withstands flooding in Nikori village, Golaghat district, Assam, SEEDS](https://dialogue.earth/content/uploads/2021/09/17-Finished-house-during-flood-SEEDS_2560px.jpg)