उर्जा

भारत में एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए क्यों ज़रुरी हैं बैटरीज़?

भारत में जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने में और अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने में बैटरियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहेगी।
हिन्दी
<p>इलस्ट्रेशन: जिज्ञासा मिश्रा/द् थर्ड पोल</p>

इलस्ट्रेशन: जिज्ञासा मिश्रा/द् थर्ड पोल

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बैटरी हर जगह एक बेहद जरूरी वस्तु बन चुकी है। खिलौने से लेकर कार तक, सामान्य वस्तुओं को ऊर्जा प्रदान करने के लिए बैटरियों की ज़रूरत होती है। लेकिन लार्ज-स्केल बैटरीज़ की भूमिका और भी बढ़ जाती है क्योंकि इसका उपयोग रिन्यूअबल एनर्जी यानी अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बिजली प्रदान करने के लिए होती है। इससे भारत और अन्य देशों को फॉसिल फ्यूल यानी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने में भी मदद मिलती है। 

बैटरी स्टोरेज यानी भंडारण क्या है?
भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिए बैटरियां क्यों महत्वपूर्ण हैं?
भारत के ऊर्जा ग्रिड को शक्ति प्रदान करने में बैटरीज़ वर्तमान में क्या भूमिका निभाती हैं?
भारत को अपने एनर्जी ट्रांजिशन यानी ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कितनी बैटरी क्षमता की आवश्यकता है?
भारत अपने पावर ग्रिड पर बैटरियों के उपयोग को कैसे बढ़ाएगा?
भारत में बैटरियों को अपनाने में क्या चुनौतियां हैं?
बैटरी उत्पादन में वैश्विक स्तर पर किनका दबदबा है?
लार्ज-स्केल बैटरी भंडारण और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए विकसित छोटी बैटरियों के बीच क्या अंतर है?
बैटरियों के उत्पादन के लिए किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है?

बैटरी स्टोरेज क्या है?

बैटरी स्टोरेज एक ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग ऊर्जा को स्टोर करने और इसकी आवश्यकता होने पर, सही समय पर और सही मात्रा में उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाने के लिए किया जाता है। आजकल, इंजीनियर्स लार्ज-स्केल बैटरीज़ पर काम कर रहे हैं, जिन्हें सौर या पवन जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से, ऊर्जा को स्टोर करने के लिए पावर ग्रिड में एकीकृत किया जा सकता है। शहरों में कार्बन उत्सर्जन और वायु प्रदूषण, दोनों को कम करने के प्रयासों के तहत बैटरी से चलने वाली कारें और स्कूटर भी भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।

भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिए बैटरी क्यों महत्वपूर्ण हैं?

अक्षय ऊर्जा द्वारा संचालित ऊर्जा ग्रिड के लिए बैटरीज़ आवश्यक हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बिजली पैदा करने के लिए कुछ खास शर्तों की आवश्यकता होती है। मसलन, एक सौर पैनल तभी बिजली उत्पन्न करेगा, जब सूरज चमक रहा हो, और एक पवन टरबाइन को संचालित करने के लिए तेज हवाओं की आवश्यकता होती है। मांग कम होने पर भी अक्षय ऊर्जा स्रोत काफी अधिक बिजली का उत्पादन कर सकते हैं, उदाहरण के लिए दिन के दौरान, जब घर में रोशनी के लिए बिजली की कम आवश्यकता होती है।

बैटरीज़ इस अतिरिक्त ऊर्जा को, सही समय पर, ग्रिड पर स्टोर करने और रिलीज करने की अनुमति देती हैं, जब उपभोक्ताओं को इसकी आवश्यकता होती है। इसे बैटरी आधारित ऊर्जा भंडारण (बीबीईएस) कहा जाता है।

परंपरागत रूप से, भारत में ग्रिड ऑपरेटरों ने कोयले – सबसे अधिक प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन – पर भरोसा किया। कोयले को एक निश्चित समय में आवश्यक बिजली की सटीक मात्रा को आगे भेजने के लिए जलाया जा सकता है। पवन और सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा से उत्पादित ऊर्जा को स्टोर करने के लिए बैटरियों का उपयोग करके ग्रिड पर आपूर्ति और मांग को संतुलित करने की इस क्षमता को फिर से उत्पन्न किया जा सकता है। ग्रिड पर आपूर्ति और मांग का संतुलन, जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाने में सबसे बड़ी बाधा है, बैटरीज़ के उपयोग से इसे दूर किया जा सकता है।

भारत के ऊर्जा ग्रिड को शक्ति प्रदान करने में बैटरीज़ वर्तमान में क्या भूमिका निभाती हैं?

भारत की वर्तमान ग्रिड से जुड़ी बैटरी भंडारण क्षमता ना के बराबर है। बैटरी आधारित बिजली भंडारण की स्थापना, अब तक छोटे पैमाने की परियोजनाओं तक ही सीमित है। भारत का पहला ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम – दिल्ली में 10 मेगावाट का सिस्टम – 2019 में लॉन्च किया गया था। फिर 2021 में, दिल्ली में 150 किलोवाट बैटरी इंस्टॉलेशन को “भारत की पहली ग्रिड-कनेक्टेड कम्युनिटी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम” के रूप में देखा गया

भारत को अपने ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कितनी बैटरी क्षमता की आवश्यकता है?

नवंबर 2021 में ग्लासगो में कॉप 26 की शुरुआत में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2030 तक भारत में गैर-जीवाश्म ईंधन से ऊर्जा उत्पादनकी क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने का संकल्प लिया था। आज यह तकरीबन 160 गीगावाट है, जाहिर है इसमें एक महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।

भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के मॉडलिंग ने निष्कर्ष निकाला कि गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता के 500 गीगावाट की डेप्लॉयमेंट एंड इंटीग्रेशन के लिए भारत में 2029-2030 तक 27 गीगावाट या 108 गीगावाट-घंटा, बैटरी क्षमता की आवश्यकता होगी। एक गीगावाट-घंटा वह माप है कि एक निश्चित समय में कितनी बिजली रिलीज की जा सकती है, जबकि गीगावाट वह माप है कि एक पीक टाइम में कितनी बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।

भारत अपने पावर ग्रिड पर बैटरियों के उपयोग को कैसे बढ़ाएगा?

अपने डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों पर जोर लगाने के लिए भारत, बैटरी उत्पादन में तेजी लाने की योजना बना रहा है। सरकार ने एक प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू की है जो बैटरी सेल्स के लिए स्थानीय निर्माताओं को पुरस्कृत करती है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इससे अगले कुछ वर्षों में 50 गीगावाट घंटे संचयी बैटरी क्षमता हासिल कर ली जाएगी। हालांकि, अगर भारत के ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों के लिहाज से देंखे तो यह, आवश्यकता के हिसाब से काफी दूर है। 

भारत में बैटरियों को अपनाने में क्या चुनौतियां हैं?

भारत को अभी भी उस पैमाने पर बैटरी निर्माण के क्षेत्र में विकास करना है जिसका उपयोग ग्रिड द्वारा किया जाएगा।

पिछले कुछ वर्षों में बैटरी की कीमतों में काफी कमी आई है, लेकिन वे भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिए आवश्यक पैमाने के लिहाज से बहुत अधिक हैं। वर्तमान में, भारत में एक इलेक्ट्रिक कार में फिट होने के लिए एक औसत बैटरी पैक की कीमत 5.5 लाख से लेकर 8 लाख रुपये के बीच है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि अगले चार वर्षों में ये सस्ती हो जाएगी।

man looking at large batteries for rooftop solar system in India
विश्व ज्योति गुरुकुल इंस्टीट्यूट ऑफ फिलॉसफी एंड रिलीजन, वाराणसी में, ये बैटरियां सौर पैनलों द्वारा उत्पादित ऊर्जा को स्टोर करती हैं (फ़्रेडरिक स्टार्क/ एलामी)

बैटरी उत्पादन में वैश्विक स्तर पर किनका दबदबा है?

2021 में निर्मित 558 गीगावाट घंटे बैटरी क्षमता के साथ चीन वर्तमान में वैश्विक बैटरी उत्पादन पर हावी है। इसके बाद 44, 28 और 22 गीगावाट घंटा बैटरी क्षमता के साथ अमेरिका, हंगरी और पोलैंड का स्थान है।

लार्ज-स्केल बैटरी भंडारण और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए विकसित छोटी बैटरियों के बीच क्या अंतर है?

वर्तमान में, बिजली क्षेत्र के लिए लार्ज-स्केल बैट्रीज की तुलना में छोटे वाहनों में प्रयोग की जाने वाली बैटरियों की मांग दस गुना अधिक है।

वर्तमान में उपयोग की जाने वाली तकनीक समान है। हालांकि कारों के लिए डिजाइन की गई बैटरी और ग्रिड के लिए बिजली स्टोर करने में उपयोग आने वाली बैटरी को देखें तो अलग-अलग बिजली अनुपात (बैटरी एक निश्चित समय में ऊर्जा की जितनी मात्रा डिस्चार्ज कर सकती है) में ऊर्जा की आवश्यकता होगी। इन अंतरों के बावजूद, इंजीनियरों का कहना है कि जैसे-जैसे इलेक्ट्रिक कारों की मांग बढ़ेगी, कीमतें घटेंगी और अंततः इससे बिजली क्षेत्र को भी फायदा होगा।

बैटरियों के उत्पादन के लिए किन सामग्रियों की आवश्यकता होती है?

वर्तमान प्रौद्योगिकियों द्वारा बैटरी बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रमुख खनिज लिथियम, निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज, ग्रेफाइट, लोहा और टाइटेनियम हैं। 

जैसे-जैसे बैटरी उत्पादन उद्योग का विस्तार होता है, महत्वपूर्ण खनिज भंडार वाले देशों का एक छोटा समूह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को नियंत्रित करता है। 2020 में, ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया के लगभग आधे लिथियम का उत्पादन किया, जबकि बोलीविया, चिली, अर्जेंटीना और अफगानिस्तान में सबसे अधिक अनुमानित भंडार हैं। कोबाल्ट के दुनिया के आधे संसाधन कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में स्थित हैं, जो खनिज के वैश्विक उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा है। वैसे, वैज्ञानिक अब बैटरियों के निर्माण के लिए वैकल्पिक सामग्रियों जैसे नमक, मैग्नीशियम, लोहा और यहां तक कि समुद्री जल में भी संभावनाएं तलाश रहे हैं।