जब हीटवेव यानी प्रचंड लू हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के रास्ते में बाधा बन जाए तो इसका मतलब है कि वक्त आ गया है कि हम सभी क्लाइमेट एक्शन यानी जलवायु कार्रवाई की मांग करें। यह बात मैं एक जलवायु वैज्ञानिक और दो छोटे बच्चों की मां के रूप में लिख रही हूं।
मैं उस टीम की एक मेंबर रही हूं जिसने मार्च 2023 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जारी नवीनतम जलवायु रिपोर्ट लिखी थी। इस रिपोर्ट को भारत सहित 195 सरकारों ने समर्थन दिया था। रिपोर्ट में प्रचंड लू की चेतावनी दी गई थी। साथ ही, यह भी कहा गया था कि इस तरह की भयानक लू इस बात का भी इम्तिहान लेगी कि इंसान कितनी गर्मी झेल सकता है।
अभी पूरे एशिया में गर्म हवाएं चल रही हैं। महाद्वीप के कई हिस्सों में तो गर्मी के रिकॉर्ड टूट गए हैं। भारत के कई शहरों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। इन सबके नतीजे साफ तौर पर नज़र आने लगे हैं। मैं भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में रहती हूं। यहां सभी सरकारी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। कई अन्य भारतीय राज्यों ने भी स्कूलों को बंद कर दिया है। या स्कूलों की टाइमिंग को कम कर दिया गया है।
कोरोना महामारी की वजह से काफ़ी दिन तक स्कूल-कॉलेज पहले ही बंद रहे हैं। अब भीषण गर्मी की वजह से ऐसा हो रहा है। यह स्थिति लाखों छोटे बच्चों की शिक्षा को और प्रभावित कर रही है। इसका सबसे ज़्यादा प्रतिकूल प्रभाव उन बच्चों पर पड़ रहा है जो समाज के कमज़ोर श्रेणी से हैं।
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण हम जिस दुनिया में पैदा हुए थे, उससे कहीं अधिक गर्म दुनिया, हमारे बच्चों को विरासत में मिली है और उनका भविष्य आज हमारे द्वारा किए जाने वाले काम पर निर्भर करता है। क्लाइमेट एक्शन पर गंभीरता के साथ विचार करने के साथ ये भी सोचने की ज़रूरत है कि सरकारें, सिविल सोसाइटी यानी नागरिक समाज, और व्यक्तिगत तौर पर हम, अपने बच्चों के रहने योग्य भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं?
1. क्लाइमेट एक्शन के लिए रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ़ बढ़ना
पश्चिम बंगाल की 10.7 गीगावाट स्थापित बिजली क्षमता का 95 फीसदी कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से आता है। जीवाश्म ईंधन का जलना, जलवायु परिवर्तन का मुख्य चालक है। राज्य की 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों से 20 फीसदी बिजली उत्पन्न करने की योजना है। यह बहुत कम है। बहुत देर हो चुकी है। भारत में कुछ राज्य पहले से ही नवीकरणीय स्रोतों से अपनी बिजली का 40-45 फीसदी उत्पादन करते हैं। ऐसे में कोई कारण नहीं है कि पश्चिम बंगाल इस क्षेत्र में अग्रणी नहीं हो सकता है, खासकर तब, जब राज्य, पहले से ही हीटवेव जैसे असहनीय जलवायु प्रभावों का सामना कर रहा है।
भयानक गर्मी के कारण अभी बंद किए गए स्कूलों और कॉलेजों की छतें, जल्द ही सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत बन सकती हैं।
रिन्यूएबल एनर्जी के लिए क्लाइमेट एक्शन में अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करना संभव है क्योंकि हमारे पास तकनीक है और यह सस्ती है। कोयला पर निर्भर थर्मल प्लांट्स की तुलना में अब सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना सस्ता है। हालांकि, जो जरूरी बात गायब है, वह है इसको लेकर सक्रिय नीतियां, मसलन, आकर्षक नेट मीटरिंग नीतियां, जो संस्थानों और घरों को सोलर रूफटॉप सिस्टम में निवेश करने और ऊर्जा उत्पादक बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। भयानक गर्मी के कारण अभी बंद किए गए स्कूलों और कॉलेजों की छतें, जल्द ही सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत बन सकती हैं। ऐसा संभव हो सकता है अगर सरकार निवेश करने के लिए व्यक्तियों और निजी क्षेत्र को सहायता प्रदान करे।
इसी तरह, पश्चिम बंगाल में मौजूदा 250,000-300,000 इलेक्ट्रिक सिंचाई पंपों को सोलराइज किया जा सकता है और ग्रिड से जोड़ा जा सकता है जिससे किसानों द्वारा पैदा की जाने वाली अतिरिक्त बिजली बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान द्वारा किए गए शोध (जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है) में पाया गया है कि ऐसे किसान जिनके पास सोलर से चलने वाले पंप हैं और वे ग्रिड से जुड़े हैं, उनको भूजल पंपिंग को कम करने के लिए मजबूत प्रोत्साहन मिलता है। इससे अधिक स्थायी परिणाम प्राप्त होते हैं।
प्रभावी नेट मीटरिंग नीतियां, समय की मांग हैं। इसके साथ ही, ग्रिड को अपग्रेड करने के लिए तेजी से निवेश करने की जरूरत है। इससे यह यह दिन के दौरान बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा को इंजेक्ट कर सकता है।
एक प्रभावी नेट मीटरिंग नीति के लिए एक बड़ी बाधा, वह मानसिकता है जो बिजली उपभोक्ताओं को बिजली उत्पादकों के रूप में फिर से कल्पना करने के लिए संघर्ष करवाती है। इससे प्रतिबंधात्मक ग्रिड कनेक्शन वाली नीतियां बनती हैं जो व्यावसायिक रूप से लाभकारी नहीं हैं।
जब कोई भी मानसिकता हमारे बच्चों के भविष्य के रास्ते में आड़े आती है, तो सबसे अच्छा यह है कि उसे छोड़ दिया जाए और क्लाइमेट एक्शन के लिए अपरिहार्य वास्तविकता को स्वीकार कर लिया जाए। और अपरिहार्य वास्तविकता यह है कि अभी बहुत तेज़ी से, बहुत भारी मात्रा में और लगातार उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता है।
2. सार्वजनिक परिवहन को डीकार्बोनाइज़ करना और सुधारना
इस मामले में, पश्चिम बंगाल ने पहले से ही काफ़ी अच्छा काम करके दिखाया है। कोलकाता के पास, भारत में किसी भी अन्य शहर की तुलना में, इलेक्ट्रिक सार्वजनिक बसों का सबसे बड़ा बेड़ा है। इस शहर में प्रति व्यक्ति निजी कारों का औसत, देश के औसत से कम है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहतर होने की वजह से भी ऐसा है। इस अच्छे काम को इसी तरह जारी रखना है। साथ ही, लोकल ट्रेन की सेवाओं और इलेक्ट्रिक बसों के बेड़ों को बढ़ाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और बेहतर करना है। कोलकाता की विरासत- ट्राम – को फिर से वापस लाने की जरूरत है। दरअसल, अब स्वच्छ परिवहन के अधिक विकल्पों की आवश्यकता है।
जिन लोगों पास अपनी कारें हैं, जिनमें निजी टैक्सियां भी शामिल हैं, उनके लिए भी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स ज्यादा किफायती हैं। और चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता, इनको सुलभ बनाते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि क्लीन पब्लिक ट्रांसपोर्ट क्लाइमेट एक्शन में एक वास्तविक क्लाइमेट सलूशन है।
3. ‘स्पंज सिटीज’ को वापस लाएं
‘स्पंज सिटीज़’ शब्द का प्रयोग ऐसे शहरों के वर्णन में किया जाता है, जहां खूब सारे पेड़-पौधे हों, झीलें हों, बहुत से पार्क हों। इसके अलावा, इन शहरों का डिजाइन कुछ इस तरह से होता है जो बारिश को अवशोषित कर सकते हैं और बाढ़ को रोक सकते हैं। जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा इस शब्द का उपयोग करने से बहुत पहले ही कोलकाता इसी तरह का शहर था। हुगली नदी के तट पर स्थित होने के साथ ही इसके चारों ओर वेटलैंड यानी आर्द्रभूमि थी।
खराब अर्बन प्लानिंग, वेटलैंड्स पर अतिक्रमण और प्राकृतिक स्थानों की उपेक्षा का मतलब यह है कि हमारी स्पंज सिटी अब पहले जैसी नहीं रही। यह अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक वर्षा दोनों का सामना करने में कम सक्षम है। फिलहाल, जरूरत इस बात की है कि वाटर बॉडीज यानी जल निकायों पर अब और अधिक अतिक्रमण को रोका जाए। पेड़ लगाए जाएं और अर्बन फॉरेस्ट्स के क्षेत्र तैयार करके हरित स्थानों को वापस लाया जाए।
यहां, स्थानीय नगरपालिकाएं और लोग, यह मांग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं कि हमें अपने बच्चों को स्वच्छ और हरित शहर देना है।
4. टॉप 5 फीसदी के व्यक्तिगत प्रयास मायने रखते हैं
अगर आप यह आर्टिकल भारत में, अपने काम के रास्ते में किसी एसी कार में बैठकर या अपने अपने खुद के अपार्टमेंट के ड्राइंग रूम में बैठकर पढ़ रहे हैं तो यह लगभग तय है कि आय के मामले में आप टॉप के 1-5 फीसदी भारतीयों में से हैं। तकरीबन 25 हजार रुपये की मासिक आय आपको इस उच्चतम आय वर्ग में रखेगी।
वैसे, ये संख्या अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार मामूली है। एक औसत भारतीय का टिपिकल कार्बन फुटप्रिंट, प्रति वर्ष, प्रति व्यक्ति 1.9 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड पर है। यह एक औसत अमेरिकी (14.2 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष) का एक अंश भर है।
यह तथ्य बरकरार है कि हमारे देश में आय के मामले में गहरी असमानताएं हैं। इससे साफ है कि हमारे देश में सबसे अमीर 1-5 फीसदी लोग, बाकी 95 फीसदी आबादी की तुलना में एक बड़ा कार्बन फुटप्रिंट देते हैं।
मुझे उन आम लोगों की ऐसी बातें जानने में दिलचस्पी है जो हमारी दुनिया को रहने योग्य बनाने के लिए असाधारण काम कर रहे हों।
इसलिए यह हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी भी है कि हम अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करें। इसके लिए हमें ज़िम्मेदारी के साथ अपने उपभोग संबंधी निर्णयों को करना होगा। माता-पिता के रूप में, हमें उपभोग की ज़िम्मेदार आदतों को विकसित करने की आवश्यकता है जैसे, कम उपयोग करना, पुन: उपयोग करना और रीसाइक्लिंग।
समाज और विशेष रूप से मीडिया को अमीरों और मशहूर लोगों के निरंतर उपभोग का महिमामंडन बंद करना चाहिए। मैं यह नहीं पढ़ना चाहती कि भारत के सबसे अमीर आदमी की बेटी की शादी की पार्टी कितनी भव्य थी। इसके बजाय, मुझे ऐसे आम नागरिकों की स्टोरीज़ देखनी है, जो हमारी दुनिया को रहने लायक बनाने के लिए असाधारण काम कर रहे हैं।
बीते हुए कल में कोरोना जैसी महामारी थी। आज हीटवेव से जूझ रहे हैं। कभी विनाशकारी बाढ़ आएगी या चक्रवात आएगा, तब स्कूल फिर से बंद हो जाएंगे। हमारे बच्चे पहले से ही जलवायु परिवर्तन के लिए एक भयानक कीमत चुका रहे हैं। और अब यह सुनिश्चित करना हमारे ऊपर है कि उनके पास उनके रहने लायक भविष्य हो।
जलवायु को दुरुस्त करने के किए जाने वाले प्रयासों के विकल्प, पहले से ही तेजी से कम होते जा रहे हैं। क्लाइमेट एक्शन में अब और भी ज़्यादा देरी करने का वक्त नहीं है।