उत्तर भारतीय राज्य, उत्तराखंड में, 3,500 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर केदारनाथ घाटी स्थित है। यह घाटी 2013 में एक भयानक बाढ़ आपदा झेल चुकी है। हालांकि तब से, यहां काफी कुछ बदल चुका है। यहां एक पुनर्निर्माण परियोजना पर काम चल रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य केदारनाथ के पुनर्निर्माण के साथ-साथ इस स्थान को आकर्षक और सुविधाजनक बनाने का है।
यहां प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर है, जहां हर साल लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस परियोजना पर मार्च 2014 में काम शुरू हुआ था। लेकिन इससे जुड़े कामों में देरी हुई है। गड़बड़ियों के आरोप लगे हैं। और इन सबसे भी ऊपर, एक अन्य अहम बात यह है कि पारिस्थितिकी के लिहाज से, नाजुक पहाड़ी क्षेत्र में, भारी निर्माण के खतरों ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह है कि क्या केदारनाथ अब 2013 की आपदा से पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित है, या उससे भी अधिक असुरक्षित।
यह क्षेत्र कितना नाजुक है, इसकी ताजा याद 4 अगस्त, 2023 की रात को आई, जब भारी बारिश के बीच केदारनाथ यात्रा मार्ग पर एक बड़ा भूस्खलन हुआ। केदारनाथ यात्रा के आरंभ स्थल, गौरीकुंड के पास भूस्खलन से कई दुकानें बह गईं। जिस समय यह रिपोर्ट लिखी गई, उस समय तक की जानकारी के अनुसार, इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 16 अन्य लापता थे।
6,000 से अधिक लोगों की मौत के साथ, उत्तराखंड में 2013 की बाढ़, भारत की अब तक की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदाओं में से एक थी।
दरअसल, 16 और 17 जून 2013 को भारी बारिश हुई थी। चोराबाड़ी ग्लेशियर भी पिघला था। इससे चोराबाड़ी झील फट गई। यह एक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) था।
इससे मंदाकिनी नदी का बहाव खतरनाक बन गया। नतीजतन, पूरी केदारनाथ घाटी और नीचे की ओर स्थित बस्तियों में बाढ़ आ गई और केदारनाथ मंदिर तक का 14 किमी का तीर्थ मार्ग नष्ट हो गया।
केदारनाथ यात्रा के दौरान, पहले पालकी ढोने का काम करने वाले रोशन, उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, “मैं बाढ़ के दिन [केदारनाथ के पास] रामबाड़ा गांव में था। मुझे बस दिमाग सुन्न कर देने वाला विनाश याद है। पूरा रामबाड़ा मेरी आंखों के सामने से गायब हो गया। कुछ ही सेकंड में, होटल, दुकानें, लोग और जानवर सभी बह गए। वे दर्दनाक यादें, अब भी मुझमें सिहरन पैदा कर देती हैं।” रोशन, बुजुर्ग या कमजोर तीर्थयात्रियों को अपनी पालकी से उनके गंतव्य तक पहुंचने में मदद करते थे।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक मनीष मेहता का कहना है कि चोराबाड़ी झील से भविष्य में जीएलओएफ का खतरा कम हो गया है। वह द् थर्ड पोल को बताते हैं: चूंकि चोराबाड़ी झील ने अपनी सभी सीमाओं को तोड़ दिया है, यह अब एक मार्ग में बदल गया है, जिसका मूल अर्थ यह है कि… इसमें कभी भी पानी नहीं रह सकता है।
लेकिन पर्यावरण वैज्ञानिक, रवि चोपड़ा, इस आशावादी आकलन से असहमत हैं और क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों की चेतावनी देते हैं। उनका कहना है, ग्लेशियरों का विखंडन हो सकता है। इससे झीलों का निर्माण हो सकता है। जाहिर है, इसीलिए, चोराबाड़ी झील के आसपास के क्षेत्रों में, हिमनद झील के फटने की संभावना को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
पर्यटन से होने वाली आय पुनर्निर्माण को प्रेरित करती है
2013 की बाढ़ के बाद, केदारनाथ की स्थायी नाजुक स्थितियों को नजरअंदाज करने और तुरंत पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के जरूरी कारण थे। उत्तराखंड, पर्यटन पर और विशेष रूप से केदारनाथ जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में आने वाले पर्यटकों पर बहुत अधिक निर्भर है।
इस आपदा से राज्य को भारी आर्थिक झटका लगा। विश्व बैंक ने बाढ़ से क़रीब 314 बिलियन यानी 31,400 करोड़ रुपए से अधिक के नुकसान का अनुमान लगाया, जो उस वित्तीय वर्ष (अप्रैल 2013-मार्च 2014) के लिए उत्तराखंड के बजट लगभग 247 बिलियन यानी 24,700 करोड़ रुपए से अधिक था। यदि केदारनाथ यात्रा फिर से शुरू नहीं की गई होती, तो राज्य को प्रतिवर्ष 198 बिलियन यानी 19,800 करोड़ रुपए तक का और नुकसान हो सकता था।
बाढ़ के बाद, उत्तराखंड को 73.5 बिलियन रुपये का सहायता पैकेज मिला। इसमें से 62.6 बिलियन रुपये, मध्यम और दीर्घकालिक पुनर्निर्माण के लिए थे, जो 2013 और 2016 के बीच राज्य को प्रदान किए जाने थे, शेष धनराशि आपातकालीन राहत और बचाव प्रयासों के लिए दी गई थी।
सर्वोच्च प्राथमिकता, केदारनाथ शहर (जिसे केदारपुरी भी कहा जाता है) के प्रमुख पर्यटन केंद्र को जल्द से जल्द तीर्थयात्रियों के लिए मेहमाननवाज और उपयुक्त बनाने की थी।
प्रारंभ में, यह कार्य नेहरू पर्वतारोहण संस्थान को दिया गया था, और फिर 2017 में, इसे श्री केदारनाथ उत्थान चैरिटेबल ट्रस्ट (एसकेयूसीटी) को स्थानांतरित कर दिया गया था। इसे राज्य सरकार ने खुद अपनी देखरेख में गठित किया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक ही प्राधिकरण, सभी पुनर्निर्माण कार्यों और क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का निर्माण कार्यों की देखरेख करे।
एसकेयूसीटी के एक परियोजना पर्यवेक्षक, विश्वनाथ सिंह, द् थर्ड पोल को बताते हैं: हमारे प्रारंभिक कार्य में, मंदिर तक ट्रैकिंग मार्ग का पुनर्निर्माण शामिल था, क्योंकि रामबाड़ा गांव के बाद, पिछला मार्ग बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। हमने मंदाकिनी नदी के बाएं किनारे पर एक वैकल्पिक मार्ग बनाया। इसे एक पुल के माध्यम से रामबाड़ा से जोड़ा। इसके अतिरिक्त, हमने केदारनाथ शहर पर ध्यान केंद्रित किया। पुलों का निर्माण हुआ। मंदिर के पीछे एक त्रिस्तरीय सुरक्षात्मक दीवार बनाई गई। घाटों का निर्माण हुआ। सरस्वती व मंदाकिनी नदियों के किनारे दीवारों को पक्का किया गया। इसके अलावा, हमने केदारनाथ बेस कैंप में कॉटेजेस, मंदिर तक पहुंचने का एक रास्ता और अन्य आवश्यक संरचनाएं बनाईं।
क्या पुनर्निर्माण केदारनाथ को असुरक्षित बना रहा है?
केदारनाथ क्षेत्र में भारी निर्माण, कुछ विशेषज्ञों के लिए एक मुद्दा रहा है। उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र के 2014 के एक अध्ययन में केदारनाथ क्षेत्र में भारी निर्माण के खिलाफ स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई थी।
2013 की आपदा के तुरंत बाद हुए अध्ययन में कहा गया था कि मंदिर टाउनशिप में किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हालांकि, मंदिर से संबंधित आवश्यक सेवाओं के लिए जिम्मेदार लोगों के लिए छोटी और हल्की संरचनाएं बनाई जा सकती हैं। मंदिर टाउनशिप में ताजा मलबा और बोल्डर जमा हो गए हैं, और अगर इनके साथ कोई छेड़छाड़ की जाती है तो इससे कटाव की गति तेज होने का खतरा पैदा हो सकता है।
रवि चोपड़ा का कहना है कि 2013 की बाढ़ के बाद जो सबक सामने आना चाहिए था, उसे इंजीनियरों और योजनाकारों ने ठीक से नहीं समझा है।
वह कहते हैं कि हम एक गंभीर भूकंप-संभावित क्षेत्र में हैं, और घाटी का आधार, जहां केदारनाथ स्थित है, सदियों से लुढ़कने वाली बड़ी चट्टानों और पत्थरों से बना है। ऐसे में, उस घाटी का आधार, स्थिर चट्टानों का नहीं है। और भूकंप की स्थिति में, ये चट्टानें हिल जाएंगी, जिससे ऊपर के सुपर स्ट्रक्चर, ढहने के लिहाज से बेहद नाजुक हो जाएंगे।
उनका कहना है कि सही तो यह होगा कि केदारनाथ में स्थिर आबादी को कम किया जाए। यहां आने वाले लोगों को मंदिर दर्शन के तुरंत बाद वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। दैनिक आधार पर केदारनाथ जाने वाले लोगों की संख्या को सीमित करने की आवश्यकता है।
ऊपरी हिस्से में मुक्त बहने वाली गंगा के लिए काम करने वाली एक संस्था, गंगा आह्वान की सदस्य मल्लिका भनोट का कहना है कि पुनर्निर्माण कार्य, नाजुक केदारनाथ घाटी पर बहुत अधिक दबाव डाल रहा है। उनका कहना है कि सड़कों, जलविद्युत परियोजनाओं, अतिथि गृहों के निर्माण के साथ-साथ बड़े पैमाने पर हेलीकॉप्टर पर्यटन से अत्यधिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की स्थिति पैदा हो गई है। इस तरह, इस पूरे भार को सहन करने की क्षमता पर दबाव बढ़ रहा है। बहुत अधिक लोग मंदिर पहुंच रहे हैं और बोझ बढ़ा रहे हैं। क्षेत्र को मूल रूप से, व्यवस्थित तरीके से खराब किया जा रहा है। अगर 2013 की तरह कोई बाढ़ आ गई, तो आपदा का प्रभाव कई गुना होगा।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक हाई पावर समिति द्वारा चार धाम की वहन क्षमता पर एक अध्ययन की सिफारिश की गई थी। समिति ने केदारनाथ मंदिर में 5,000 तीर्थयात्रियों की दैनिक सीमा की सिफारिश की थी। लेकिन आधिकारिक तौर पर, वर्तमान में रोजाना 13,000 लोगों को जाने की अनुमति है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, पुष्कर सिंह धामी ने 2023 में, केदारनाथ सहित विभिन्न पहाड़ी शहरों की वहन क्षमता के अध्ययन कराने को लेकर घोषणा की है।
केदारनाथ पुनर्निर्माण में देरी
वैसे तो, एकल प्राधिकरण के निर्माण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि केदारनाथ में पुनर्निर्माण समग्र और समयबद्ध तरीके से हो, लेकिन भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की 2018 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि निर्माण, कई समय सीमा से चूक गया था। इसने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी न देने, विभिन्न एजेंसियों द्वारा निर्माणाधीन परियोजनाओं में देरी और धन के अत्यधिक आवंटन पर भी गौर किया। न तो राज्य और न ही केंद्र सरकार ने इन आलोचनाओं का जवाब दिया है। लेकिन कई लंबित निर्माण परियोजनाएं जून 2021 तक पूरी हो गईं।
एसकेयूसीटी के विश्वनाथ सिंह कहते हैं कि पुनर्निर्माण कार्य में कई दिक्कतें आईं। उन्होंने बताया कि जलवायु सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे केवल पांच से छह महीने ही काम हो पाता है। गर्मियों के दौरान, जो ज्यादातर तीर्थ यात्रा का मौसम भी होता है, काम करना कठिन हो जाता है। प्रारंभ में, टट्टू निर्माण सामग्री का परिवहन करते थे, लेकिन बाद में, इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए एक हेलीपैड बनाया गया, और तब से, हम भारी मशीनरी परिवहन के लिए वायुसेना के एमआई-26 हेलीकॉप्टरों का उपयोग कर रहे हैं। मुझे लगता है कि बाकी परियोजनाओं को पूरा होने में कम से कम छह से सात साल और लगेंगे।
उत्तराखंड के मुख्य सचिव और एसकेयूसीटी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह संधू ने पिछले साल कहा था कि केदारनाथ में सभी पुनर्निर्माण परियोजनाएं दिसंबर 2023 तक पूरी हो जाएंगी। लेकिन अब लगता है कि अभी और इंतजार करना पड़ेगा।
केदारनाथ (केदारपुरी) टाउनशिप के चारों ओर तीन-स्तरीय सुरक्षा दीवार का निर्माण जून 2021 में पूरा हो गया था और अब यह सौंदर्यीकरण के चरण में है। अधिकारियों का दावा है कि यह दीवार पानी का रुख मोड़कर बस्ती को भविष्य में आने वाली बाढ़ से बचाएगी। लेकिन केवल एक और आकस्मिक बाढ़ ही ऐसे दावों का परीक्षण कर सकती है।
इस साल जुलाई में भारी बारिश के कारण केदारनाथ यात्रा रोक दी गई थी। इसके तुरंत बाद, 4 अगस्त को हुए भूस्खलन में जान-माल का काफी नुकसान हुआ। इससे पता चलता है कि बहुत अधिक धन और समय खर्च करने के बाद भी मार्ग काफी असुरक्षित रहता है।
नोट: इस रिपोर्ट के लेखकों ने टिप्पणी के लिए रुद्रप्रयाग के जिला मजिस्ट्रेट और श्री केदारनाथ उत्थान चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन प्रकाशन की तारीख तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर लेख को अपडेट किया जाएगा।