जलवायु

चिकित्सा प्रक्रियाओं से छिप जाती है हीटवेव में मरने वालों की सही संख्या 

उत्तर प्रदेश में हीटवेव के कारण, कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। हालांकि इसको लेकर सरकारी तंत्र ने जिस तरह का रुख दिखाया है, उससे यह सवाल उठता है कि भारत में हीटवेव की वजह से होने वाली मौतों के मामलों को किस तरह से दर्ज किया जाता है। सवाल यह भी है कि इससे क्या जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभाव को समझने में कठिनाई आ रही है।
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<p>उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 7 जून, 2022 को भयानक लू के बीच सफर करते श्रमिक। इस साल, राज्य को एक बार फिर अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा है। (फोटो: रितेश शुक्ला)</p>

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 7 जून, 2022 को भयानक लू के बीच सफर करते श्रमिक। इस साल, राज्य को एक बार फिर अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ा है। (फोटो: रितेश शुक्ला)

इस साल 15 से 22 जून के बीच, उत्तर प्रदेश के बलिया और देवरिया ज़िलों के दो अस्पतालों में 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई। इस अवधि में, बलिया में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया था और ह्यूमिडिटी 30-50 फीसदी थी। हीटवेव का असर साफ़ नज़र आ रहा था।

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के हीट इंडेक्स कैलकुलेटर के अनुसार, इन हालात में किसी इंसान के शरीर को 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक जैसा तापमान महसूस होगा। यह अत्यधिक खतरे के संकेत हैं। लू या हीटवेव के संबंध में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पहले ही चेतावनी जारी की थी कि इसके आने की प्रबल संभावना है।  

भारत में लू का प्रकोप

भारत में, यदि किसी मौसम केंद्र पर अधिकतम तापमान, मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय इलाकों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो हीटवेव घोषित कर दिया जाता है। इसके अलावा, अगर लगातार दो दिन तक तापमान सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहे तब भी हीटवेव के हालात की घोषणा कर दी जाती है। 

बताया जा रहा है कि राज्य सरकार के एक मंत्री ने माना है कि बलिया और देवरिया में मौतों में बढ़ोतरी का एक कारण लू भी है। बलिया भेजी गई एक जांच टीम ने निष्कर्ष निकाला कि मौतों की एक वजह गर्मी भी हो सकती है लेकिन यही एकमात्र वजह नहीं हो सकती है क्योंकि यह भी देखा जाना चाहिए कि जान गंवाने वाले ज्यादातर मरीज स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं से जूझ रहे थे। 

इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि भारत, अत्यधिक गर्मी के स्वास्थ्य प्रभाव को किस तरह से दर्ज करता है। जबकि इस सच से हर कोई वाकिफ है कि जलवायु परिवर्तन के चलते देश में लोग भीषण गर्मी का प्रकोप झेल रहे हैं। 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के शैक्षणिक संस्थान के निदेशक दिलीप मावलंकर ने द् थर्ड पोल से कहा कि जन्म और मृत्यु से संबंधित प्रणाली, देश में व्यवस्थित नहीं है। अतिरिक्त मृत्यु के मामले दर्ज करने को लेकर सरकार की तरफ से रुचि न होना, एक त्रुटिपूर्ण मृत्यु प्रबंधन प्रणाली की ओर इशारा करती है।

उन्होंने यह भी बताया कि यूरोप में 2003 की हीटवेव के दौरान, केवल तीन सप्ताह में 70,000 अतिरिक्त मौतें दर्ज की गईं। जबकि सभी सीधे तौर पर हीटवेव से जुड़े मामले नहीं थे। वहीं, भारत की बात करें तो इसी साल बलिया और देवरिया में भी ऐसी ही घटनाएं हुईं, जहां अतिरिक्त मृत्यु के मामले तो दर्ज किए गए लेकिन कोई कारण नहीं बताया गया।

भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने 20 जून को घोषणा की कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हीटवेव के प्रभाव को कम करने के लिए अनुसंधान करेगी।

भारत में हीटवेव से होने वाली मौतों का निर्धारण कैसे किया जाता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक कार्यक्रमों के साथ बतौर हेल्थ पॉलिसी एडवाइजर काम करने वाले एक चिकित्सक राकेश पाराशर बताते हैं कि भारत में जो मृत्यु प्रमाणपत्र बनाया जाता है उसमें मृत्यु के तत्काल कारण और पहले के कारणों (मतलब ऐसी स्थितियां जो मृत्यु के अंतिम कारण का कारण बनीं या इसमें योगदान दिया) यानी दोनों का जिक्र किया जा सकता है। 

वह बताते हैं कि मृत्यु प्रमाण पत्र से जुड़े नियम [डॉक्टरों] से इस्केमिक हार्ट डिजीज [हृदय में रक्त के प्रवाह में कमी] या एक्यूट किडनी फेल्योर, जैसे तत्काल चिकित्सा कारणों का उल्लेख करने के लिए कहते हैं। यह कुछ लोगों में, विशेष रूप से बुजुर्गों और मधुमेह रोगियों में गर्मी के संपर्क में आने या हीट स्ट्रोक के कारण हो सकता है। इस प्रकार, गर्मी का जोखिम, मृत्यु में मददगार या पूर्ववर्ती कारक हो सकता है।

पाराशर ने बताया, “गर्मी, कार्डियक संबंधी मामलों को बढ़ा सकती है, खासकर बुजुर्गों में। और यह [हीट मॉर्टैलिटी डाटा में] पूरी तरह से गायब है, क्योंकि हीट मॉर्टैलिटी डाटा, ज्यादातर हीट स्ट्रोक या संदिग्ध हीट स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों को कैप्चर करता है। 

पराशर ने यह भी कहा कि यूपी के मामले में, यह हृदय संबंधी मौतों में, गर्मी के असर को नजरअंदाज कर सकता है। यह हीट स्ट्रोक की सही पहचान करने से चूक सकता है। कई मौतों में अत्यधिक गर्मी की भूमिका रही है, इससे यह बात नजरअंदाज हो सकती है। 


इस डाटा के बिना हम जलवायु वैज्ञानिकों के लिए हीटवेव्स और हीट स्ट्रोक/मॉर्टैलिटी के बीच संबंध पर काम करना काफी मुश्किल है
रॉक्सी मैथ्यू कोल, द् इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के क्लाइमेट साइंटिस्ट 

भारत में मौतों के पीछे वजहों में, भीषण गर्मी की भूमिका को दर्ज करने में स्पष्टता की कमी है। इस वजह से विभिन्न सरकारी एजेंसियों की तरफ से इकट्ठा किए गए ‘हीट डेथ्स’ यानी गर्मी से होने वाली मौतों से संबंधित आंकड़ों में काफी विसंगतियां नजर आती हैं। 

भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में हीटवेव के कारण केवल चार लोगों की मौत हुई। हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की बात करें तो भीषण गर्मी की वजह से 530 मौतें हुई हैं। 

मृत्यु का कारण बनने में अत्यधिक गर्मी की भूमिका निर्धारित करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। प्रयोगशाला में होने वाले परीक्षण, हीट स्ट्रोक की वजह से होने वाले वाले ऑर्गन डैमेज का पता लगा सकते हैं। कई तरह के टेस्ट करके से सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर हाइपरथर्मिया (हाई बॉडी टेंपरेचर) के प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। लेकिन किसी अकेले टेस्ट से यह पता नहीं लगाया जा सकता कि मौत की वजह हीटवेव रही है। 

मावलंकर ने द् थर्ड पोल को बताया कि उत्तर प्रदेश में अभी जैसा हुआ कि भीषण गर्मी की वजह से लोगों को जान गंवानी पड़ी, ऐसे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ठीक से पड़ताल के लिए स्वास्थ्य सांख्यिकीविदों और महामारी विज्ञानियों द्वारा डाटा का सर्वेक्षण करने के लिए पोस्टमार्टम की आवश्यकता होती है।

लेकिन बलिया के मामले में, वह कहते हैं कि जांच दल का नेतृत्व, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र यानी नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के प्रमुख ने किया था, जो मुख्य रूप से संचारी रोगों से संबंधित है।

जलवायु परिवर्तन के साथ भारत में लू से पैदा होने वाले हालात बदतर होने वाले हैं 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की अप्रैल 2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हीटवेव पहले से ही तेज़ हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1961 और 2020 के बीच प्रति दशक औसतन एक दिन की वृद्धि हुई है। उत्तर पश्चिम भारत में लंबे समय से हीटवेव की आवृत्ति, अवधि और अधिकतम अवधि में वृद्धि के रुझान हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएं और भी अधिक बार और गंभीर होने वाली हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित इंडियाज नेशनल एक्शन प्लान ऑन हीट रिलेटेड इलनेस में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से भारत में हीटवेव फ्रीक्वेंसी (एचडब्ल्यूएफ) और हीटवेव ड्यूरेशन (एचडब्ल्यूडी) प्रति दशक 0.5 घटनाओं और प्रति दशक 4-7 दिनों तक बढ़ने की उम्मीद है।

जलवायु परिवर्तन के कारण, भारत में वेट-बल्ब टेंपरेचर में भी वृद्धि होने की संभावना है, जो ह्यूमिडिटी और वायु तापमान के संयुक्त प्रभाव को ध्यान में रखता है। हाई वेट-बल्ब टेंपरेचर, मानव शरीर के लिए बहुत अधिक गर्म लगता है, और बहुत अधिक खतरनाक होता है।

द् इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के क्लाइमेट साइंटिस्ट, रॉक्सी मैथ्यू कोल का कहना है कि हीट वेव का प्रकोप भारत में पहले से काफी तेज हो गया है। यह वैश्विक औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस परिवर्तन [जो पहले ही हो चुका है] का नतीजा है। वह कहते हैं कि 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग के 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाने का अनुमान है, और तब तक हीटवेव अधिक तीव्र हो जाएगी, लगातार आएगी और बहुत बड़े क्षेत्र तक इसका असर होगा। 

रॉक्सी मैथ्यू कोल का कहना है कि हमें इस मुद्दे [मृत्यु के कारण में अत्यधिक गर्मी की भूमिका को सटीक रूप से रिकॉर्ड करना] को हल करना चाहिए, क्योंकि इस डाटा के बिना हम जलवायु वैज्ञानिकों के लिए हीटवेव्स और हीट स्ट्रोक/मॉर्टैलिटी के बीच संबंध पर काम करना काफी मुश्किल है।