प्रकृति

विज्ञान एवं संरक्षण को फायदा पहुंचा रहे कश्मीर के पक्षी प्रेमी

महामारी के बाद कश्मीर में पक्षी प्रेमी समूहों की दिलचस्पी बढ़ी है। इससे क्षेत्र की जैव विविधता को दीर्घकालिक लाभ होने की संभावना है।
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<p>मेहरीन खलील पिछले 10 सालों से कश्मीर में पक्षियों की गतिविधियों पर नज़र रख रही हैं। उन्होंने कश्मीर के पक्षियों के जीवन पर अनुसंधान और संरक्षण में सहयोग करने के लिए एक गैर-लाभकारी फाउंडेशन की स्थापना भी की है। (फोटो: मेहरीन खलील के सौजन्य से)</p>

मेहरीन खलील पिछले 10 सालों से कश्मीर में पक्षियों की गतिविधियों पर नज़र रख रही हैं। उन्होंने कश्मीर के पक्षियों के जीवन पर अनुसंधान और संरक्षण में सहयोग करने के लिए एक गैर-लाभकारी फाउंडेशन की स्थापना भी की है। (फोटो: मेहरीन खलील के सौजन्य से)

जुलाई में एक रविवार की सुबह पांच लोगों का एक समूह दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान पहुंचा। यह कश्मीर के जबरवान पर्वत की तलहटी में है। पक्षियों की चहचहाहट और सुबह की धुंध के बीच इस समूह के लीडर इंटेसर सुहैल, एक नक्शे पर उस रास्ते को तलाशते हैं जिस पर वे चल रहे हैं। इस पक्षी प्रेमी समूह के पास अत्याधुनिक उपकरण है – दूरबीन, बड़े ज़ूम लेंस वाले डीएसएलआर कैमरे और ट्राइपोड। हालांकि यह पार्क गंभीर रूप से लुप्तप्राय हंगुल लाल हिरण, जिसे कश्मीर हिरण भी कहा जाता है, के घर रूप में भी जाना जाता है। यह अन्य प्रसिद्ध स्तनधारियों का घर है। लेकिन यह समूह यहां पक्षियों की तलाश कर रहा है। 

कश्मीर वन्यजीव विभाग में अधिकारी और शोपियां व पुलवामा ज़िलों के वार्डन के रूप में कार्यरत सुहैल बताते हैं, “आज हम यहां हैं, अगले हफ़्ते हम कहीं और होंगे। पक्षियों के लिए हमारी यह सतत लालसा कभी खत्म नहीं होती।’’ 

सुहैल का समूह अलग नहीं है: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सैकड़ों लोग सक्रिय रूप से पक्षियों और उनके संरक्षण में रुचि ले रहे हैं।  दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रचलित प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करते हुए कश्मीर के प्रमुख पक्षी प्रेमियों ने द् थर्ड पोल को बताया कि यह दिलचस्पी काफ़ी हद तक बढ़ गई है, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने लोगों को सांत्वना और मनोरंजन के लिए अपने आस-पास के परिवेश की ओर मुड़ने के लिए प्रेरित किया है।

कश्मीर में परिंदों का बढ़ता आसमान

पेशे से बागवानी विशेषज्ञ, तसादुक मुईन ने 2009 में, बर्डिंग क्लब कश्मीर बर्डवॉच की स्थापना की। ये समूह बर्ड वॉचिंग यात्राएं आयोजित करता है। पक्षियों के स्थलों का दस्तावेजीकरण करता है। कश्मीर के खास पक्षियों पर शोध प्रकाशित करता है। वर्षों तक कुछेक वन्यजीव विशेषज्ञ ही इसके सदस्य थे। लेकिन मुईन का कहना है कि 2020 के बाद से, संगठन में बड़ी संख्या में स्थानीय सदस्य शामिल हुए हैं।

मुईन कहते हैं, ”कभी दहाई अंकों की संख्या छूने के लिए संघर्ष करने वाले हम, अब सैकड़ों की संख्या में हैं, जो एक शानदार भविष्य का वादा करता है।” बचपन से ही बर्ड वॉचिंग में रुचि होने के कारण उन्होंने हरियाणा और गुजरात जैसे स्थानों में कई बर्ड वॉचिंग शिविरों में भाग लिया, लेकिन कश्मीर में पक्षियों के प्रति उन्हें कोई रुचि नहीं दिखी। उन्होंने 1980 के दशक के अंत में, कश्मीर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में नेचर क्लब स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन चरमपंथी घटनाओं के कारण ये विफल हो गए।

गांदरबल के शिक्षक और शौकिया पक्षी प्रेमी इरफान जिलानी ने 2020 के लॉकडाउन की शुरुआत में फेसबुक समूह ‘बर्ड्स ऑफ कश्मीर‘ की शुरुआत की। अब इसके 9,000 सदस्य हैं। जिलानी ने द् थर्ड पोल को बताया, “इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पक्षी प्रेमियों को एक मंच पर इकट्ठा करना था, ताकि लोगों को बर्ड वॉचिंग के लिए प्रेरित किया जा सके।” उनका कहना है कि पक्षियों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है, और सोशल मीडिया, उत्साही लोगों को उनके विचार प्रकट करने की अनुमति देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

क्या पक्षियों के दिखने से कश्मीर में विज्ञान को मदद मिल सकती है?

जम्मू और कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग की वेबसाइट पर एक चेक लिस्ट में 213 पक्षी प्रजातियों की सूची है, जो हिमालयी क्षेत्र की विविध आर्द्रभूमि, पहाड़ी ढलानों और हरे-भरे जंगलों में निवास करती हैं। कश्मीर में आर्द्रभूमि के वन्यजीव वार्डन इफशान दीवान बताते हैं कि अभी पक्षियों की लगभग 350 प्रजातियां हैं।

कुछ प्रजातियां, जैसे कि कश्मीर फ्लाईकैचर और ऑरेंज बुलफिंच, केवल कश्मीर में प्रजनन करती हैं, जो पूरे भारत और उससे बाहर के पक्षी प्रेमियों को आकर्षित करती हैं, जो उन्हें अपने ‘जीवन में देखे गए पक्षियों की सूची’ में जोड़ने की उम्मीद करते हैं।

an orange bullfinch sitting on a branch
ऑरेंज बुलफिंच, एक प्रजाति जो केवल कश्मीर और उसके आसपास ही प्रजनन करती है। (फोटो: अलामी)

पक्षी प्रेमी इस क्षेत्र में रहने और आने वाले पक्षियों के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान बढ़ा रहे हैं। 28 वर्षीय पक्षी प्रेमी और श्रीनगर के निवासी रेयान सोफी का दावा है कि उन्होंने 2016 में बर्ड वॉचिंग शुरू करने के बाद से, कश्मीर में 300 से अधिक पक्षी प्रजातियों को देखा है। उनका कहना है कि उन्होंने काली गर्दन वाले ग्रीब, सामान्य गोल्डन आई और नुकीली पूंछ वाले सैंडपाइपर को देखा है। सभी आर्द्रभूमि पक्षी जो उत्तर और पूर्व में प्रजनन करते हैं – एक सदी से भी अधिक समय बाद कश्मीर में पहली बार दिखे थे।

A man birdwatching through his camera in a wetland
रेयान सोफी होकरसर वेटलैंड, कश्मीर में पक्षियों को देखते हुए (फोटो: अदीब अहमद)

जब वे किसी दुर्लभ पक्षी को देखते हैं, साथ ही सोशल मीडिया पर इसके बारे में पोस्ट डालते हैं, तो पक्षी प्रेमी अक्सर ईबर्ड जैसे सिटीजन साइंस ऐप्स में रिकॉर्ड जमा करते हैं, और इंडियन बर्ड्स और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) की पत्रिका में प्रकाशन के लिए टिप्पणी भेजते हैं। 

प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी कैरोल इंस्किप, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के पक्षियों पर महत्वपूर्ण फील्ड गाइड की रचना की है, का कहना है कि ये रिकॉर्ड उल्लेखनीय हैं। “कश्मीर में स्थानीय पक्षी प्रेमियों ने विशेष रूप से हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रिकॉर्ड (योगदान) दिया है और अब भी योगदान दे रहे हैं,” कैरोल ने द् थर्ड पोल को एक ईमेल में बताया। “इस प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना है, क्योंकि आज पक्षी प्रेमियों के पास आमतौर पर बेहतर ऑप्टिकल उपकरण, बेहतर पहचान गाइड तक पहुंच और इंटरनेट के जरिये बेहतर सूचना स्रोतों तक पहुंच है, ताकि वे अपने रिकॉर्ड के मूल्य का अधिक आसानी से आकलन कर सकें।”

बीएनएचएस के पूर्व निदेशक और बोर्ड के सदस्य असद आर. रहमानी इस बात से सहमत हैं कि कश्मीर में पक्षी प्रेमियों से उभरने वाला नागरिक विज्ञान, बेहद महत्वपूर्ण है, और वह कहते हैं कि इस क्षेत्र में शिकार और पक्षियों को फंसाने की लंबे समय से चली आ रही परंपराओं को देखते हुए यह प्रशंसनीय है। सर्दियों में कश्मीर में प्रवास करने वाले कई पक्षियों का अवैध शिकार, अब भी एक गंभीर खतरा बना हुआ है। वह कहते हैं, “कश्मीर के पक्षी प्रेमियों को, पक्षियों को देखने में कम, बल्कि सुरक्षित स्थानों के निर्माण और पक्षियों के लिए आशाजनक भविष्य की ओर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है।”

बर्ड वॉचिंग के प्रति जीवन भर की दिलचस्पी ने मेहरीन खलील को संरक्षण विज्ञान में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। पारिस्थितिकी विज्ञान में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने पक्षियों के अनुसंधान और संरक्षण में योगदान देने के लिए श्रीनगर स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन, वन्यजीव अनुसंधान और संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की। जुलाई में अपनी साप्ताहिक बर्ड वॉचिंग यात्रा के दौरान द् थर्ड पोल से बात करते हुए खलील कहती हैं, “मैं आमतौर पर पक्षियों के पैटर्न, आवास विकल्पों और उनकी गतिविधियों पर जलवायु-परिवर्तन के कारण पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन करती हूं, जिससे अंततः उचित कार्रवाई की जा सके और इस प्रकार उनका संरक्षण हो।” उनके साथ उनके माता-पिता भी शामिल हो गए हैं, जिन्होंने पक्षियों के प्रति अपनी बेटी के अटूट जुनून को देखने के बाद आखिरकार उनके साथ जुड़ने का फैसला किया।

संरक्षण की ओर बढ़ते पक्षी प्रेमियों के कदम

रेयान सोफी पिछले साल के एक दिन को याद करते हैं, जब होकरसर वेटलैंड की यात्रा के दौरान उन्होंने मल्लार्ड बत्तखों के एक समूह को शिकारियों के जाल में संघर्ष करते देखा था। उन्होंने स्थानीय वन्यजीव विभाग को सचेत किया और अधिकारियों को आते देख शिकारी भाग गए। फिर सोफी पक्षियों को बचाने गए।

वहीं, इरफान जिलानी का कहना है कि वह कश्मीर वन्यजीव विभाग और भूविज्ञान और खनन विभाग को अनियमित नदी खनन को रोकने के लिए लिख रहे हैं, जिससे दुर्लभ इबिस्बिल के आवास को खतरा है। उनका कहना है कि उन्होंने इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर भी उठाया है और अन्य पक्षी प्रेमियों से पक्षियों के आवास की रक्षा में मदद करने का आह्वान किया है।

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इबिस्बिल, एक दुर्लभ और अनोखा पक्षी, जो हिमालय और उत्तरी चीन में पहाड़ी नदियों के किनारे रहता है (फोटो: अलामी)

बीएनएचएस के रहमानी का कहना है कि पक्षी प्रेमी कश्मीर वन्यजीव विभाग की “आंख और कान” बन सकते हैं। पक्षी प्रेमियों से सीधे अपील करते हुए वह कहते हैं: “यदि आप अवैध शिकार देखते हैं, जो कश्मीर में बहुत आम है, तो इसे रोकने का प्रयास करें, आपराधिक शिकारियों से विनम्रता से बात करें, वाहन का नंबर नोट करें और अधिकारियों को इसकी सूचना दें। कानून अपने हाथ में न लें।”

कश्मीर में पक्षी अवलोकन के लिए एक नैतिक रास्ता

जैसे-जैसे बर्ड वॉचिंग, कश्मीर में लोकप्रियता हासिल कर रही है और प्रतिभाओं को सुर्खियों में ला रही है, इससे स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। पूरे दक्षिण एशिया और विदेशों से आने वाले पक्षी प्रेमी विशेषज्ञ गाइड की तलाश में रहते हैं।

लेकिन सुहैल के मुताबिक, बर्ड वॉचिंग का बढ़ता व्यवसायीकरण जोखिम लाता है। वह कहते हैं, “हम पक्षियों को खुले में लुभाने के लिए चारा फेंकने और उन्हें उकसाने की प्रवृत्ति का चलन देख रहे हैं और केवल तस्वीर खींचने के लिए पक्षियों के आवासों में अनुचित अतिक्रमण देख रहे हैं। यह सब उनकी प्रजनन आदतों को प्रभावित करेगा, तनाव के स्तर को बढ़ाएगा और पक्षियों के व्यवहार को बदल देगा। इस सबको कम करने और इसमें सुधार करने की ज़रूरत है।”

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दाचीगाम नेशनल पार्क में इंतेशार सुहैल के नेतृत्व में पक्षी देखने वालों का एक समूह, जुलाई 2023 (फोटो: अदीब अहमद)

कश्मीर वन्यजीव विभाग के वार्डन रशीद नक्श का कहना है कि उनका विभाग संभावित संरक्षण लाभों को देखते हुए बर्ड वॉचिंग के विकास का समर्थन करेगा। नक्श कहते हैं, ”हम पक्षियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता और रुचि पैदा करने के लिए स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पक्षी यात्राएं, कार्यक्रम और जागरूकता अभियान चलाकर बर्ड वॉचिंग को प्रोत्साहित करने के इच्छुक हैं।”

कश्मीर में आर्द्रभूमि की वन्यजीव वार्डन, इफशान दीवान कहती हैं: “हम पक्षी प्रेमियों की मदद करने, सुविधा देने और प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने दस्तावेजीकरण के ज़रिए ख्याति अर्जित की है, जो विभागों को उनके संरक्षण कार्य में मदद करती है… हम उन्हें वित्तपोषित करने और सुविधाएं देने और उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण समर्थन देने पर काम कर रहे हैं । इस सबंध में कुछ बड़ी परियोजनाएं विचाराधीन हैं।”

कैरोल इंस्किप कहते हैं, “मुझे लगता है कि कश्मीर में स्थानीय लोगों में बर्ड वॉचिंग के प्रति बढ़ती रुचि से निश्चित रूप से पक्षी संरक्षण को लाभ होगा। जो लोग पक्षियों में रुचि रखते हैं, उन्हें पक्षियों और उनके भविष्य की परवाह करनी चाहिए और संभावना है कि वे पक्षियों और उनके आवासों के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए काम करेंगे।”

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